गुरुवार, 3 जून 2010

हकीकत


'हकीकत ' तेरी स्वयं की
वास्तविकता में भी ,
भिन्नता झलकती है ,
नज़र के सामने की तस्वीर
रूप क्यो बदलती है ?
दिखाती है कुछ ,किंतु
बयां कुछ और ही करती है ,
असलियत के भाव से सम्पूरण
गवाही फिर भी
भिन्न -भिन्न देती है ,
हकीकत के आइने में भी
सत्य हर क्षण छलती है

12 टिप्‍पणियां:

  1. sunder abhivykti .....bhavo ko itnee sahjata se vykt karana hakeekat me itna sahaj bhee nahee .
    Aabhar.

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  2. बेशक बहुत सुन्दर लिखा और सचित्र रचना ने उसको और खूबसूरत बना दिया है.

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  3. Bahut sundar! Haan...jeevan ke rang nirale..kisne samjhe,kisne jaane?

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  4. ज्योति जी शयद यही हकीक़त है बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  5. jyotiji aap kahan hai ?
    असलियत के भाव से सम्पूरण
    गवाही फिर भी भिन्न -भिन्न देती है ,
    bahut achhi abhivykti .

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  6. रचना उत्कृष्ट . चित्र स्वयँ मे महाकाव्य है ।
    ज्योति जी ! विलक्षण सामंजस्य ।

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