सोमवार, 24 मई 2010

यकीन



यकीं बन कर आए


चाहो तो रोक लो,


वरना क्या जाने कब


धुँआ बन उड़ जाए


इस एतबार का कुछ


कहा जाए,


कुछ पहले साथ


आगे धोखा दे जाए

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

    जवाब देंहटाएं
  2. एक चेतावनी सी देती रचना.....अच्छी लगी

    जवाब देंहटाएं
  3. सच ही कहा आपने, एक बहुत सच्ची बात

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह क्या बात है. अति सुंदर भाव

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर रचना, सुन्दर तस्वीर के साथ. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. वक्त कब क्या रंग बदले कौन जाने?
    'यकीन बन कर आये ..चाहो तो रोक लो '..सच्चे भाव हैं.

    जवाब देंहटाएं
  7. panee ke bulbule sa hota hai ye...........
    sandesh lite achee rachana......

    जवाब देंहटाएं
  8. ज्योति जी, लगभग सभी कवितायें मैने आपकी पढीं.आप अच्छा लिखती हैं. लेकिन आपकी कुछ कविताओं में भाव स्पष्ट नहीं हो पाया, आप कविता में कहना क्या चाहतीं हैं. अभी और मेहनत कीजिये. शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  9. इस एतबार का कुछ

    कहा न जाए,

    कुछ पल पहले साथ

    आगे धोखा दे जाए।

    सुन्दर रचना!!

    जवाब देंहटाएं