कुछ यादे .....
प्रिय सखी हर बार की तरह इस वर्ष भी तुम्हे शब्दों का उपहार दे रही हूँ ,एक दौर गुजर गया आपस में बिछड़ने के बाद मगर यादे अटल और स्थिर है ,मिलना और जुदा होना हमारा , नियति के हाथ में रहा और इसलिए दोष किसी को नही दे सकते ,पर सुनहरी यादो को सहेज कर रक्खा जा सकता है ,एक उम्मीद के साथ और वही उम्मीद बरकरार है आज भी ,अहसास बूढ़े कहाँ होते कभी ,वो तो थमे हुए है इन्तजार में उसी मोड़ पर काश के साथ आज भी ,मुझे एक बौने की शक्ल लिए प्रतीत होते है और कानो में फुसफुसाते है मिलकर कभी सीधा करो और उसी वक़्त की तलाश जारी है जिससे उसे भी राहत मिले ,जहां साथ चलना था वहां अब एक पल का इन्तजार है ताकि आमने -सामने खड़े होकर उस सुनहरे क्षण को तराशते हुए ये तो कह तसल्ली कर सके कि इस परिवर्तन में उस वक़्त सा कुछ नही रहा जो अपने पास था जो अपने साथ था , एक बार स्वप्न में जब तुम मिली तब मैं तुम्हारे आगे सिर्फ यही सवाल उठाई कि 'ये दुनिया कितनी बदल गयी है न ?और उत्तर में तुम कह उठी सच ,बिलकुल सच .और तभी मैं बोल उठी 'अब तो हम भी ,हम नही रहे ' । आज इंसानियत और आदर्श के जिस्म पर जो गर्द जमी है बस उसे ही मिलकर हटाना है ,झाड़ना है जिससे एक झलक निहार कर संतोष कर ले यकीन कर ले कि रूह अभी भी सही सलामत है सिर्फ बदन ही मैले है । अपनी बात यही रोकते हुए तुम्हे सालगिरह की ढेरो बधाइयां देती हूँ इस रचना के माध्यम से ,जहां भी हो खुश रहो ----
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व्यथा जिद पर अड़ी रही
बाँध कर दूरी को साथ ,
निशिदिन रहा ,अनमना सा मन
उम्मीदों की पाले आस ,
रूंधा कंठ क्रन्दन करता
कभी तो हो पूरी ,
मिलने की आस ।
करुणा से परिपूर्ण जीवन
सखी तुम बिन खाली आँगन ,
इन साँसों की अवधि पर जाने
कब तक रहे ,समय का साथ ।
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अपनी इस रचना के साथ दो पंक्तियाँ जगजीत सिंह की गजल की भी भेट स्वरुप तुम्हे --------
अपनी मर्ज़ी से कहाँ कही के हम है
रुख हवाओ का जिधर है ,
वही के हम है ।
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टिप्पणियाँ
bahut sundar likhti hain aap...
accha laga padhna...
क्योंकि
'इन साँसों की अवधि पर जाने
कब तक रहे ,समय का साथ ।'
ek ek shabd prashansa k yogye hai.