धीरे - धीरे यह अहसास हो रहा है ,
वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है।
कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़ ,
आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है।
*************************
इन्तहां हो रही है खामोशी की ,
वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं।
****************************
जिंदगी है दोस्त हमारी ,
कभी इससे दुश्मनी ,
कभी है इससे यारी।
रूठने - मनाने के सिलसिले में ,
हो गई कहीं और प्यारी ।
****************************
इस इज़हार में इकरार
नज़रंदाज़ सा है कहीं ,
थामते रह गए ज़रूरत को ,
चाहत का नामोनिशान नहीं।
...................................................
ये बहुत पुरानी रचना है किसी के कहने पर फिर से पोस्ट कर रही हूँ ।
टिप्पणियाँ
किसी तूफ़ान का ज़िक्र न करो ।
वाकई माहौल जब खुशनुमा हो तो विसंगतियों का जिक्र भी फीका कर देती है
बहुत सुन्दर
बहुत बढ़िया ,
आप की इच्छा सही है ,
माहौल को ख़ुश्गवार बनाना इंसान के अपने
हाथ में होता है
किसी तूफ़ान का ज़िक्र न करो ..
सच है खुशियों की बात जब हो ... तो गम का ज़िक्र क्यों ... अच्छा लिखा है ....
जुस्तजू सिमटी हो बाँहों में ,
ऐसे खुशनुमा माहौल में
किसी तूफ़ान का ज़िक्र न करो ।
ज्योति सिंह द्वारा 10:32 AM पर Jun 8,
वाह आप तो आते ही छा गयीं
isee shubhkamna ke sath......
AUR KYUN NA HOGI.....
ITNI MAASOOM AUR KHOOBSOORAT JO HAI!
SAADAR VANDE!
उमंग भरी मौज की कश्ती में सवार आकांशा की वधू खुशियों से यूँ ही चहकती रहे .
बहुत प्यारा सा अनुरोध है..