मंगलवार, 8 जून 2010

गुजारिश


दुर्घटनाओ की उठी लहरों को
फना करो ,
आकांक्षा की वधू को
सँवरने दो ,
उठे ऐसी आंधी कोई
कश्ती का रुख मोड़ दे ,
उमंग भरी मौज की कश्ती
साहिल पे आने दो ,
कारवां जब निगाहों में
जुस्तजू सिमटी हो बाँहों में ,
ऐसे खुशनुमा माहौल में
किसी तूफ़ान का ज़िक्र करो

15 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे खुशनुमा माहौल में
    किसी तूफ़ान का ज़िक्र न करो ।
    वाकई माहौल जब खुशनुमा हो तो विसंगतियों का जिक्र भी फीका कर देती है
    बहुत सुन्दर

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  2. आपकी यह कविता बहुत पसंद आई है...धन्यवाद..

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  3. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  4. ज्योति जी ,
    बहुत बढ़िया ,
    आप की इच्छा सही है ,
    माहौल को ख़ुश्गवार बनाना इंसान के अपने
    हाथ में होता है

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  5. मन को छू गयी ये गुज़ारिश....बहुत बढ़िया

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  6. ऐसे खुशनुमा माहौल में
    किसी तूफ़ान का ज़िक्र न करो ..

    सच है खुशियों की बात जब हो ... तो गम का ज़िक्र क्यों ... अच्छा लिखा है ....

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  7. कारवां जब निगाहों में
    जुस्तजू सिमटी हो बाँहों में ,
    ऐसे खुशनुमा माहौल में
    किसी तूफ़ान का ज़िक्र न करो ।
    ज्योति सिंह द्वारा 10:32 AM पर Jun 8,

    वाह आप तो आते ही छा गयीं

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  8. mazaa aa gaya...........aisaa mood aapka bana rahe......
    isee shubhkamna ke sath......

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  9. खुशनुमा माहोल बना रहे ..कोई ग़म ,कोई तूफान कभी पास न आये.
    उमंग भरी मौज की कश्ती में सवार आकांशा की वधू खुशियों से यूँ ही चहकती रहे .
    बहुत प्यारा सा अनुरोध है..

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