शनिवार, 12 जून 2010

संशय


अनजान से रास्ते ,
पहचान लिए
साथ में ,
चल रहे हम
दिशा की ख़बर नही ,
चाह फिर भी ,
बढ़ने की ,
राह तो
कही नही ,
भूल रहे हम ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ ,ऐसा होता है जीवन में कभी कभी जब संशय की स्थिति आती है...
    उद्देश्य से भटक न जाएँ बस ...राहें चाहे बदलनी पड़ें.
    चंद पंक्तियों में अच्छी भावाभिव्यक्ति की है.

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  2. ज्योति जी, एक बार फिर कविता में भाव स्पष्ट नहीं हो सके.
    अनजान से रास्ते ,
    पहचान लिए
    साथ में ,
    इन पंक्तियों को तो बिल्कुल ही नहीं समझ पा रहा. हो सकता है, मेरा कविता-ज्ञान ही कम हो.

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  3. आपका संशय सही है कभी कभी सबको होता है और ये एक जागरूक प्रवृत्ति की निशानी भी है

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  4. विचार फिर पुनर्विचार ।
    प्रेरणादायी रचना ।
    अति प्रशंसनीय ।

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  5. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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