चल तो लूंगी ..........


कब तक और ____
कहाँ तक
इन्तजार में खड़े रहकर
तुम्हारे सहारे को तकते रहें __
कभी तो
कहीं तो
तुम छोड़ ही दोगे
ऊब कर
बैसाखी तो हो नही
जो पास में रख लू
इतना ही काफी है
जो तुमने खड़ा कर दिया ___
दौड़ भले पाऊं
तुम्हारे बगैर ,
मगर चल तो लूंगी अब ,
धीरे -धीरे ही सही
गिरते -पड़ते लड़खड़ाते ,
एक दिन दौड़ने भी लगूंगी

टिप्पणियाँ

Dev K Jha ने कहा…
मगर चल तो लूंगी अब ,
धीरे -धीरे ही सही
गिरते -पड़ते लड़खड़ाते ,
एक दिन दौड़ने भी लगूंगी ।

कितना सुन्दर लिखा है..... बहुत खूब
kshama ने कहा…
Saral seedhee bhasha,aur vichar...to rachna apne aap sundar ban padti hai!
कभी तो
कहीं तो
तुम छोड़ ही दोगे
ऊब कर ।
बैसाखी तो हो नही
जो पास में रख लू ।
बहुत सुन्दर रचना है ज्योति. सच कहूं, तो तुम्हारी अब तक पोस्ट की गयीं तमाम कविताओं में से सबसे अच्छी लगी. इसी तरह लिखती रहो. शुभकामनाएं.
nilesh mathur ने कहा…
बहुत संवेदनशील रचना!
Alpana Verma ने कहा…
बहुत ही आत्मविश्वास भरा कथन!
सकारात्मक सोच ही व्यक्ति को आगे बढ़ते रहने का हौसला देती है..
ज्योति जी बहुत अच्छी कविता है...आप की बेहतरीन रचनाओं में से एक.
yahi daud meri jeet banegi...bahut hi badhiyaa
सच ही कहा है अपने, जब कुछ करने की इच्छा हो, बस जरा सा सहारा मिल जाये तो हम दौड़ ही नहीं सकते अव्वल भी आ सकते हैं.
आभार
हौसला हो मन में तो सब हो जाता है....अच्छी रचना..चलना नहीं दौडना है...
Apanatva ने कहा…
sada kee bhanti sunder abhivykti..........
vishvas swatah par isekee jhalak acchee lagee....
मनोज कुमार ने कहा…
सीधे सीधे जीवन से जुड़ी रस कविता में नैराश्य कहीं नहीं दीखता। एक अदम्य जिजीविषा का भाव कविता में इस भाव की अभिव्यक्ति हुई है।
बहुत संवेदनशील रचना!
सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं.
आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
अपने पैरों का भरोसा ही तो आत्मविश्वास है और इससे ही आसमान छुआ जा सकता है.
एक विश्वास को उजागर करती हुई रचना बहुत सुन्दर.
लता 'हया' ने कहा…
बहुत बहुत शुक्रिया ,
अपने -पराये . काव्यांजलि ;दोनों ब्लॉग अच्छे लगे .
ज्योति सिंह ने कहा…
सभी मित्रो का दिल से शुक्रिया साथ चलने के liye
आमीन ... आशा भारी रचना ... दिल को छू गयी ...

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