चल तो लूंगी ..........
कब तक और ____
कहाँ तक
इन्तजार में खड़े रहकर
तुम्हारे सहारे को तकते रहें __
कभी तो
कहीं तो
तुम छोड़ ही दोगे
ऊब कर ।
बैसाखी तो हो नही
जो पास में रख लू ।
इतना ही काफी है
जो तुमने खड़ा कर दिया ___
दौड़ भले न पाऊं
तुम्हारे बगैर ,
मगर चल तो लूंगी अब ,
धीरे -धीरे ही सही
गिरते -पड़ते लड़खड़ाते ,
एक दिन दौड़ने भी लगूंगी ।
टिप्पणियाँ
धीरे -धीरे ही सही
गिरते -पड़ते लड़खड़ाते ,
एक दिन दौड़ने भी लगूंगी ।
कितना सुन्दर लिखा है..... बहुत खूब
कहीं तो
तुम छोड़ ही दोगे
ऊब कर ।
बैसाखी तो हो नही
जो पास में रख लू ।
बहुत सुन्दर रचना है ज्योति. सच कहूं, तो तुम्हारी अब तक पोस्ट की गयीं तमाम कविताओं में से सबसे अच्छी लगी. इसी तरह लिखती रहो. शुभकामनाएं.
सकारात्मक सोच ही व्यक्ति को आगे बढ़ते रहने का हौसला देती है..
ज्योति जी बहुत अच्छी कविता है...आप की बेहतरीन रचनाओं में से एक.
आभार
vishvas swatah par isekee jhalak acchee lagee....
आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
एक विश्वास को उजागर करती हुई रचना बहुत सुन्दर.
अपने -पराये . काव्यांजलि ;दोनों ब्लॉग अच्छे लगे .