कौन हो तुम ....?
वक़्त किसी के लिए
ठहरता नही ,
मगर तुम्हे उम्मीद है
कि वो ठहरेगा ,
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारे लिए ,
और इन्तजार करेगा
तुम्हारा ,
बड़ी बेसब्री से ।
कोई अलभ्य
शख्सियत हो ?
जो रुख हवाओं का
मोड़ रहे हो ?
वर्ना आदमी दौड़कर भी
पकड़ नही पाया
वक़्त को तां - उम्र ,
और तुम बड़े इत्मीनान से
सुस्ता रहे हो ।
टिप्पणियाँ
सुन्दर रचना
Bahut sundar likhteen hain aap!
कितने गहरे भाव पेश किए हैं आपने.
आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक लगी ये कविता.
सुस्ता रहे हो ।
वक्त दौड़ रहा है ...मन भी उसी गति से दौड़ रहा है ...पर पकड़ नहीं पाएगा । जब तक कि खुद न गिर जाए ।
स्वयं की समय के परिप्रेक्ष्य में अच्छी पड़ताल
सुंदर रचना ।
ek jageh aapne tan umr likha he vo shabd tamaam umr hota he mere khayal se.
samay ke गति के साथ
जिसने भी बैठाया ताल-मेल
सफलता की बुलंदियों पर
पहुंचा बन कर सुपर मेल
परन्तु, हम जैसे साधारण लोगो की सोच..?
हमारे लिए तो ये वही है
पसेंजेर, वही रलेम-पेल!!!!!!
बहुत सुन्दर !
आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद ... आप सबका प्यार यूँही बना रहे यही तमन्ना है !
वक़्त किस के हाथ आया ?
हमें तो कोई उम्मीद ही नहीं वक़्त से संगीता जी ....!!
अच्छी रचना .....!!
bahut achhi rachna
aabhar
aise aalsi azgaron ko vaqt ki bereham maar ek din sab kuchh sikha deti hai