सोमवार, 2 अगस्त 2010

दर्द ..


आहिस्ता - आहिस्ता
दर्द घर में
पैर जमाता रहा _
और कुछ हल्की
कुछ गहरी छाप
अपनी शक्ल की
छोड़ता रहा
हम इसकी आमद से
घबराते रहे ,
ये अपना राज
फैलाता रहा

25 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है !

    हम इसकी आमद से
    घबराते रहे ,
    ये अपना राज
    फैलाता रहा

    बहुत बढ़िया ज्योति जी

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  2. वाह दर्द का आहिस्ता से आना और चुपके से अपनी जडें जमाना बहुत बढिया ।

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  3. दर्द अहिस्ता आहिस्ता ही आता है...कभी बिना आहट भी ...और चुपके से कब अपना राज कायम कर लेता है ..मालूम ही नहीं चलता .
    बहुत सुंदरता से आप ने मन के भावों को अभिव्यक्त किया है .छोटी सी कविता गहरी सी बात कह दी..

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  4. बहुत सुन्दर ज्योतिजी बहुत अर्थपूर्ण रचना है आपकी ! बधाई !

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  5. Oh!Wah! Sach...bilkul aisahi hota hai..dard dekhte hi dekhte hamare jeevan me bas jata hai!

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  6. हमेशा की तरह बहुत शशक्त रचना है...भावनाओं को शब्द देना कोई आपसे सीखे...बेहतरीन...मेरा अभिवादन स्वीकार करें...

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  7. बहुत सुन्दर, बेहद प्रभावशाली, कमाल कि अभिव्यक्ति!

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  8. हम इसकी आमद से
    घबराते रहे ,
    ये अपना राज
    फैलाता रहा

    क्या बात है..... !

    बहुत बढ़िया....!!

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  9. थोड़े शब्दों में गहरी बात. बहुत सुंदर.

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  10. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

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  11. बहुत बढ़िया,
    बहुत सुन्दर.

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  12. बहुत सुंदरता से आप ने मन के भावों को अभिव्यक्त किया है ...
    बहुत बढ़िया....!!

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  13. और उसकी आहट शब्दों में उतरती रही ।

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  14. बहुत बढिया चंद शब्दों मे गहरे भाव। आभार।

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  15. दर्द बहुत तेज़ी से फैलता है ... इसका कोई इलाज़ नही ...

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