रविवार, 29 मई 2011

सन्नाटा


चीर कर सन्नाटा

श्मशान का

सवाल उठाया मैंने ,

होते हो आबाद

हर रोज

कितनी जानो से यहाँ

फिर क्यों इतनी ख़ामोशी

बिखरी है

क्यों सन्नाटा छाया है यहाँ ,

हर एक लाश के आने पर

तुम जश्न मनाओ

आबाद हो रहा तुम्हारा जहां

यह अहसास कराओ .

27 टिप्‍पणियां:

  1. ज्योति जी
    नमस्कार
    सच में "सन्नाटा" रचना में एक अलहदा सोच दिखाई दी है.
    आपने तो श्मशान से भी एक प्रश्न उठा कर पाठकों के बीच खडा कर दिया है.
    दिल को छो जाने वाली पंक्ति :-
    हर रोज
    कितनी जानो से यहाँ
    फिर क्यों इतनी ख़ामोशी
    बिखरी है

    - विजय तिवारी " किसलय "

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  2. बाप रे बाप ! ज्योति जी 'चीर कर सन्नाटा' आप श्मशान भी पहुँच गयीं.सच में बड़ी हिम्मत है आपमें.
    आपने श्मशान से प्रश्न पूछ अपनी 'ज्योत'अब श्मशान में में भी बिखेर दी है.
    कहतें हैं 'शिव' का वास होता है श्मशान में.

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  3. सन्नाटा कान में चीत्कार करता है।

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  4. आक्रोश का यह चेहरा ही वक़्त की मांग है ....

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  5. हर एक लाश के आने पर

    तुम जश्न मनाओ

    आबाद हो रहा तुम्हारा जहां

    यह अहसास कराओ

    बहुत तेज़ शोर है सन्नाटे का ..

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  6. श्मशान में बिखरे सन्नाटे को तोड़ने की हिम्मत...लाशों का शौर और जश्न ...जीवन के बाह्य आवरण में तो बहुत शौर है...आपने तो इसके बाद के शौर से बहुत कुछ कहने की कोशिश की है। सन्नाटे सहने की हममें हिम्मत नहीं होती। शौर जीवन का अभिन्न अंग लगता है।

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  7. बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

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  8. वाह्………क्या खूब सोच है …………बेहद उम्दा प्रस्तुति।

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  9. सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .

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  10. हर एक लाश के आने पर
    तुम जश्न मनाओ
    आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
    यह अहसास कराओ .
    बहुत गहरी चोट छिपी हे आप की इस कविता मे, धन्यवाद

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  11. apaki soch kahan se kahan pahunch gayi, isi ko kahate hain kavi man. bag bageechon se man bhar gaya to shmashan pahunch gaye aur usako bhi suna dali.

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  12. क्या पता मनाती ही हों ...
    सारी आत्माएं मिलकर .....:))

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  13. हर एक लाश के आने पर
    तुम जश्न मनाओ
    आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
    यह अहसास कराओ .

    Gahan Abhivykti...

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  14. हर एक लाश के आने पर
    तुम जश्न मनाओ
    आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
    यह अहसास कराओ
    बहुत तेज़ शोर है सन्नाटे का ..

    बहुत अच्छा लिखा है...

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  15. हर एक लाश के आने पर
    तुम जश्न मनाओ
    आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
    यह अहसास कराओ

    कभी सन्नाटा भी चुभता है. गज़ब एहसास भरें है ज्योति जी आपने इस कविता में. अंदर तक हिला दिया. बहुत सुंदर.

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  16. jyoti ji
    bhai aapne to gazab ka prashn uthaya hai lekin bilkul sateek rachna
    jahan har roz jane kitne hi dafna diye jaate hain .par fir bhi sannta vahan bikhra pada hai .
    lekin vah bahuto ki aviral aansuo se nam bhi to hota hoga fir kitni der jashhn manayega . srishhti ke niymo se to har koi bandha hota hai .fir kapalik kitni der jashn manayega.vo to kurati hi iska aadi ho chuka rahta hai .
    atah unke liye ye koi naya kary nahi haota .ham sabhi apne apne kartavyo se bandhe hue hain
    aur chahe jaise bhi use pura karna hi padta hai .
    aapki prastuti waqai is bar alag si parantu yatharthta liye hue hai
    bahut hi sarthak post
    badhai
    poonam

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  17. हर रोज
    कितनी जानो से यहाँ
    फिर क्यों इतनी ख़ामोशी
    बिखरी है

    सुंदर- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  18. बहुत गहराई लिये हुये है यह कविता

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  19. ज्योति जी एक शेर याद आ रहा है अर्ज किया है हे शम्शान भूमि तेरा सन्नाटा हमसे देखा नहीं जाता , हम अपनी जान दे देकर तुझे आबाद करते है | आपकी रचना बहुत गहन अर्थ लिए हुए है, बधाई

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  20. kya baat hai kitni gahri soch
    हर रोज
    कितनी जानो से यहाँ
    फिर क्यों इतनी ख़ामोशी
    बिखरी है
    khoob likha hai
    rachana

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  21. आबाद हो रहा है तुम्हारा जहां
    अहसास कराओ..

    बहुत सुंदर पंक्तियां।

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  22. क्या लिखूं , केवल महसूस किया जा सकता है . मन भारी हो जाता है . आभार .

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