सोमवार, 6 जून 2011

तन्हा


यभीत हूँ

कही ये युग

बहुत ऊंचाई तक

पहुँचने के प्रयास में

नई तकनीक की

तलाश में

अपना वजूद न मिटा दे ,

महाप्रलय के शिकंजे में

फंस कर

अपना आधार न

गवा दे ,

आज हमें

सिर्फ तन्हा होने का

ख्याल डस रहा है ,

कल सारी धरती ही

तन्हा न हो जाये ______ l

30 टिप्‍पणियां:

  1. सच में स्थिति भय देने वाली ही है...... प्रभावित करती रचना

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  2. कविता अच्छी है परंतु "तमसो मा ज्योतिर्गमय" की संस्कृति के वाहकों के लिये यह भय बेमानी है।

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  3. स्वयं को स्थापित करने के प्रयास में तो यही निष्कर्ष दिखायी पड़ते हैं।

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  4. जीवन दर्शन को अभिव्यंजित करती रचना .......आपका आभार

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  5. सच को बयां करती सुन्दर रचना।

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  6. ऐसा होने वाला है .. तरक्की कोई रोक नही सकता ... युग बदलेगा इस तन्हाई के बाद फिर से ....

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  7. truly day by day we r loosing our base !!
    a thought provoking post !!

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  8. यह डर सताना तो लाजमी है. पर जीना भी जरुरी है. और विकास भी.

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  9. सार्थक चिंता ..

    खूबसूरत रचना

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  10. स्थिति भयावह तो है ही क्योंकि आदमी तो अपनी हरकतों से बाज आने वाला अब है नहीं. क़ुदरत को ही कुछ करना पड़ेगा.

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  11. bahut khoob
    aajkal har cheez out of limit hoti ja rhi hain

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  12. यही होगा यह कविता नहीं भविष्यवाणी है

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  13. कही ये युग
    बहुत ऊंचाई तक
    पहुँचने के प्रयास में
    नई तकनीक की
    तलाश में
    अपना वजूद न मिटा दे ,

    बहुत सुंदर और सार्थक रचना !!!!!!!!!

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  14. बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना! सच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है!

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  15. sahi hai bhavishyavan hi hai hum kuchh aesa hi kar rahenhain

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  16. परिवर्तन ही जीवन का लक्षण है. हर युग में मनुष्य भयाक्रांत हुआ है किन्तु प्रकृति ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अनुकूल परिस्थिति तैयार कर जीने की सम्भावना को अब तक जीवित रखा है.अनुग्रह की भी एक सीमा होती है.काश ! इस बात को अनुग्रहित मनुष्य समय रहते समझ ले.आपकी रचना में गहन विचार मंथन है

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  17. चित्र और कविता के भाव एक दूसरे के पूरक लगे..तन्हाई कुछ इसी तरह भयावह होती है!

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  18. आज हमें
    सिर्फ तन्हा होने का
    ख्याल डस रहा है ,
    कल सारी धरती ही
    तन्हा न हो जाये .....

    बहुत ही सार्थक लेखन के साथ विचारणीय प्रश्न भी ..

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  19. सफलता एक पिरामिड की तरह होती हैं.
    आप जितना उपर जाते हो, वो उतनी सकरी होती जाती है.
    और आप अकेले होते जाते हो.
    --------------------------------------------
    क्या मानवता भी क्षेत्रवादी होती है ?

    बाबा का अनशन टुटा !

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  20. ज्योति जी आप तो प्रकाशस्वरूप हैं.फिर भय कैसा?
    महाप्रलय शरीर की ही हो सकती है,आत्मा की नहीं. कबीरदास जी कहते हैं
    'झूंठे सुख को सुख कहें, मानत हैं मन मोद
    जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद'

    जीवन काल में हम आत्म ज्ञान प्राप्त करलें यही सबसे बड़ी ऊँचाई पर पहुँच पाने की तकनीक है.

    आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.

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  21. तन्हा ...तन्हा ...तन्हा मत सोचा कर
    मर जाएगा तू मत सोचा कर ...

    ...शायद इस विकास में ही कुछ बेहतर निकल आए ...

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  22. badiya rachna ke liye badhaai..
    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - सम्पूर्ण प्रेम...(Complete Love)

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  23. आपके ब्लॉग पर दर्शन न होने से बहुत सूना सूना लगता है.

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  24. sahi kaha aapne sthiti bhayabhit karne wali hi hai
    sunder kavita
    rachana

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  25. Chinttan bilkul sahi hai...aur bhaykari bhi nishchit hi hamare kadam usi disha me badh rahe hain.

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  26. ज्योति जी आप का भय बहुत सही है हम सब का भी लेकिन घबराइए मत प्रभु अपनी सत्ता अपना महल पूरा नहीं गिरता बस थोडा थोडा तोड़ सुधारता रहता है -सुन्दर रचना
    शुक्ल भ्रमर ५

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