ख्वाब वही
ख्वाहिश वही
अल्फाज वही
ज़ुबां वही ,
फिर रास्ते कैसे
जुदा है सफ़र के ,
कदम साथ अपने
दे रहे क्यों नहीं ।
कही तो कुछ
खलिश है मन में
जो दिल चाहकर भी
मिल रहा नहीं ।
मोहब्बत में आदमी जीता कम
मरता ज्यादा है ,
पाने से अधिक खोने के लिए
डरता ज्यादा है ,
यकीं कम ,उम्मीद के सहारे
चलता ज्यादा है ,
तभी संभल नही पाता और
गिरता ज्यादा है ।
एकता और प्रेम की मिसाल
हम कायम करना चाहते थे ,
अमन और इंसानियत का हथियार
हम इस्तेमाल करना चाहते थे ,
मगर आक्रोश और जुनून में
खौलते हुए चंद विचार ,
अस्त्र -शस्त्र चलाने पर
हमें मजबूर करते रहे ,
इतिहास के पन्ने जो पहले
वीर गाथाओं से भरे थे ,
आज काले -काले धब्बो से
भरकर भद्दे होते जा रहे ,
समय को हम चाहते है रोकना
इतिहास को हम चाहते है बदलना
पर दोनों ही हमारे वश में नहीं रहे ,
हम अंत कभी नहीं चाहते थे
पर इसके भागीदार तो बने रहे ,
ऐसा लगता है मानो
इस युग के अंत को
हम बड़े नजदीक से है देख रहे ।
क्या कहा जाये
क्या सुना जाये
इस क्या से आगे
यहाँ कैसे बढ़ा जाये
समझ आता नहीं ,
क्योंकि ये दुनिया अब
पहले जैसे सीधी रही नहीं ,
तभी आसान बात भी
मुश्किल नज़र आती है ,
किसी से कहे कुछ
उसे समझ कुछ
और आती है ।
शायद इसलिए ज़िन्दगी अब ,
लम्हों में बिखर जाती है ।
वैसा कुछ भी नहीं रहा यहाँ
जैसा पहले हुआ करता रहा यहाँ
वक़्त के दरिया में कल बह गया
आज हर किसी का बदला हुआ है यहाँ 1
वक़्त की मांगे करवटे लेती रहती है
उम्मीदे बहुत कुछ बदल देती है यहाँ
आगाज़ से बहुत अलग अंजाम होता है
रिश्ते बनते है जैसे वैसे रहते नहीं यहाँ 1