गुरुवार, 14 मार्च 2019

मिट्टी की आशा ....

सब चीजों को हमने
बस ,पाने का मन बनाया ,

जब हाथ नही वो आया
तो मन दुख से भर आया ।

जीतकर दुनिया भी सिकंदर
कुछ नही यहां भोग पाया ,

हुकूमत की लालसा में उसने
बस लाशों का ढेर लगाया ।

बहुत ज्यादा की आस में उसने
खुद को सिर्फ भटकाया ,

क्षण भर को आराम न मिला
ले डूबी उसे मोहमाया ।

मिट्टी की ही आशा है
मिट्टी की ही है काया ,

फिर क्यों जरूरत से ज्यादा
है, तूने लालच जगाया ।

मिले जितना उतने में ही
आनंद जिसने भरपूर उठाया ,

सुख मिला जीवन का उसी को
मेहनत से जिसने कमाया ।

ज्योति सिंह

14 टिप्‍पणियां:

  1. मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता

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  2. Shukriya sanjay दिल से आभारी हूं तुम्हारी

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  3. सुशील जी शिवम जी बहुत बहुत धन्यवाद ,नमस्कार

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  4. वाह जीवन का सार कह दिया आपने ज्योति जी।

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  5. सत्य का बोध कराती रचना। बधाई और शुभकामनाएं।

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  6. बहुत ही सुन्दर ,सार्थक एवं सारगर्भित रचना...

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