सब चीजों को हमने
बस ,पाने का मन बनाया ,
जब हाथ नही वो आया
तो मन दुख से भर आया ।
जीतकर दुनिया भी सिकंदर
कुछ नही यहां भोग पाया ,
हुकूमत की लालसा में उसने
बस लाशों का ढेर लगाया ।
बहुत ज्यादा की आस में उसने
खुद को सिर्फ भटकाया ,
क्षण भर को आराम न मिला
ले डूबी उसे मोहमाया ।
मिट्टी की ही आशा है
मिट्टी की ही है काया ,
फिर क्यों जरूरत से ज्यादा
है, तूने लालच जगाया ।
मिले जितना उतने में ही
आनंद जिसने भरपूर उठाया ,
सुख मिला जीवन का उसी को
मेहनत से जिसने कमाया ।
ज्योति सिंह
दिल से आभारी हूँ आपकी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ...
जवाब देंहटाएंमैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंShukriya sanjay दिल से आभारी हूं तुम्हारी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कामिनी जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुशील जी शिवम जी बहुत बहुत धन्यवाद ,नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर
वाह जीवन का सार कह दिया आपने ज्योति जी।
जवाब देंहटाएंमन को सुकून देती सी रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसत्य का बोध कराती रचना। बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ,सार्थक एवं सारगर्भित रचना...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर
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