गुमां नहीं रहा


जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा

इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा ,

आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ

साथ के इसका एतबार नही रहा ,

मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये

हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा ,

जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए

मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,

देख कर तबाही का नजारा हर तरफ

अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा ,

वर्तमान की काया विकृत होते देख

भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा ,

सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी

हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l

टिप्पणियाँ

ज्योति सिंह ने कहा…
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ,मैं अवश्य आऊँगी ,नमस्कार
मन की वीणा ने कहा…
बहुत शाश्वत भावों वाली सार्थक रचना ।
बहुत सुंदर।
Anuradha chauhan ने कहा…
बहुत सुंदर रचना 👌👌
दिल के सुंदर एहसास
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
चिंतन मनन करती हुयी रचना ...
एक समय आता है ऐसा जब खुद का खुद पे अधिकार नहीं रहता ... यही जीवन है ...
kahi_unkahi ने कहा…
बहुत सुंदर रचना
Dr Varsha Singh ने कहा…
बहुत सुन्दर रचना ज्योति जी
Jyoti Singh ने कहा…
बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी का
Jyoti Singh ने कहा…
बहुत बहुत धन्यवाद साथियों

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