पतवार
शीर्षक ---पतवार
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उम्र गुजर जाती है सबकी
लिए एक ही बात ,
सबको देते जाते है हम
आँचल भर सौगात ,
फिर भी खाली होता है
क्यों अपने मे आज ?
रिक्त रहा जीवन का पन्ना
जाने क्या है राज ?
बात बड़ी मामूली सी है
पर करती खड़ा फसाद ,
करके संबंधों को विच्छेदित
है बीच में उठाती दीवार ।
सवालों में उलझा हुआ
ये मानव संसार
गिले - शिकवे की अपूर्णता पर
घिरा रहा मन हर बार ।
रहस्य भरा कैसा अद्भुत
है मन का ये अहसास ,
रोमांचक किस्से सा अनुभव
इस लेन- देन के साथ ,
जीवन की नदियां मे
चल रही है पतवार ,
कभी मिल गया किनारा
कभी डूबे बीच मझधार ।
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ज्योति सिंह
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