गुरुवार, 12 सितंबर 2019

अधूरी आस


ख्यालो की दौड़ कभी

थमती नही

कलम को थाम सकू

वो फुर्सत नही ,

जब भी कोशिश हुई

पकड़ने की

वक़्त छीन ले गया ,

एक पल को भी

रूकने नही दिया ,

सोचती हूँ

इन्द्रधनुषी रंग सभी

क्या बादल में ही

छिप कर रह जायेंगे ,

या जमीं को भी

कभी हसीं बनायेंगे l

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