जीवन की अवधि
और दुर्दशा
चीटी की भांति
होती जा रही है ,
कब मसल जाये
कब कुचल जाये ,
कब बीच कतार से
अलग होकर
अपनो से जुदा हो जाये ।
भयभीत हूँ
सहमी हूँ
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नही
या कर्मो का फल ?
ज्योति
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं।
धन्यवाद संजय ,धन्यवाद यशोदा जी हृदय से आप दोनों की आभारी हूँ ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय ,धन्यवाद यशोदा जी हृदय से आप दोनों की आभारी हूँ ।
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