मंगलवार, 17 सितंबर 2019

दुर्दशा ?


जीवन की अवधि

और दुर्दशा

चीटी की भांति

होती जा रही है ,

कब मसल जाये

कब कुचल जाये ,

कब बीच कतार से

अलग होकर

अपनो से जुदा हो जाये ।

भयभीत हूँ

सहमी हूँ

मनुष्य जीवन आखिर

अभिशप्त क्यों हो रहा ?

कही हमारे कोसने का

दुष्परिणाम तो नही

या कर्मो का फल ?

ज्योति

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं।

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  3. धन्यवाद संजय ,धन्यवाद यशोदा जी हृदय से आप दोनों की आभारी हूँ ।

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