रविवार, 12 अप्रैल 2020

दीवारे सहारे ढूँढती है

दीवारे  सहारे  ढूँढती है 

कल के नजारे ढूँढती है ,

वो पहले से लोग

वो पहले से जमाने ढूँढती है ,

आज के ठिकानों में 

कल के ठिकाने ढूँढती है ,

ऊँची-ऊँची इमारते नहीं

जमीन के घरौंदे  ढूँढती है ,

मकान की खूबसूरती नही

घर का सुख-चैन ढूँढती है ,

गैरों  की भाषा नही

अपनो की परिभाषा ढूँढती है ,

दिलो में अहसास के खजाने

विश्वास का सहारा ढूँढती है ,

उम्मीद की किरणों में

खुशियों की रौशनी ढूँढती है ,

रिश्तों मे व्यपार नही

प्यार को ढूँढती है ,

खिड़की से चांद -तारे को

दरवाजे पर अपने प्यारो को ढूँढती है ।

दीवारे सहारे ढूँढती है .........।

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या कहने बहुत उम्दा। आपका अंदाज़े बयाँ निराला है ज्योति जी। रवानी और रफ़्तार यूँ ही बनी रहे। बहुत ही कमाल

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  2. दिल से शुक्रियां करती हूं ।यू ही मार्ग दर्शन करते रहे अजय जी ,नमस्कार

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  3. सभी साथियों को धन्यवाद करती हूं ,आप सभी ने आकर मेरे हौसले को बढ़ाया ,जरूर दीदी अब लिखती रहूंगी

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  4. सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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