मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

सन्नाटा


चीर कर सन्नाटा

श्मशान का

सवाल उठाया मैंने ,

होते हो आबाद

हर रोज

कितनी जानो से यहाँ

फिर क्यों बिखरी है

इतनी खामोशी

क्यों सन्नाटा छाया है यहाँ ,

हर एक लाश के आने पर

तुम जश्न मनाओ

आबाद हो रहा तुम्हारा जहां

यह अहसास कराओ 

ऐ श्मशान तेरा  ये सन्नाटा

क्यो नही जाता ,

जबकि दे  दे कर

हम अपनी जाने 

तुझे आबाद करते हैं ।

11 टिप्‍पणियां:

  1. निःशब्द हूँ। क्या कहूं समझ ही नहीं पा रहा ,सिर्फ इतना की बहुत दमदार और बहुत गहरा लिख दिया आपने

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  2. मैं इस काबिल तो नहीं अजय जी, लेकिन आपको मेरी रचना पसंद आई इसके लिए हृदय से आभारी हूँ आपकी ,आपके शब्दों ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया ,बहुत बहुत धन्यवाद ।

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  3. निःशब्द करते भाव ... बेजोड़ सृजन

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  4. ये सन्नाटा जाना भी नहीं है...असल में ये मौन है।

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  5. बहुत बहुत शुक्रियां साथियों

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  6. सन्नाटे को कौन आबाद कर सका है आज तक ...
    मन की बात बाखूबी रक्खी है आपने ...

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  7. शुक्रियां दिगम्बर जी ,तहे दिल से आभारी हूँ

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  8. अरे वाह यहाँ भी आई थी ,बहुत बहुत धन्यवाद

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