गुरुवार, 11 जून 2020

चाँद सिसकता रहा

चाँद सिसकता रहा

शमा जलती रही ,

खामोशी को तोड़ता हुआ

दर्द कराहता रहा ,

और फ़साना उंगुलियां

कलम से दोहराती रही ,

आँखों के अश्क में

शब्द सभी नहाते रहे ,

रात के अँधेरे में

ख्याल लड़खड़ाते रहे ,

एक लम्बी आह में

शब्द एकदम से ठहर गए ,

उंगुलियां बेजान हो

साथ कलम का छोड़ गई ,

दर्द से लिपट

असहाय बनी रही ,

और लिखे क्या

बात लिखने की रही नहीं ,

इस तरह फ़साने गढे नहीं

रह गये अधूरे कही ,

शून्य सा समा बाँध

चाँद भी बेबस रहा ।

चाँद सिसकता रहा ....

9 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर ,हार्दिक आभार

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  2. चाँद सिसकता रहा...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ज्योति जी । बधाई ह्रदय स्पर्शी रचना के लिये ।

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  3. और अफ़साना लिखा न गया... बहुत सुन्दर रचना।

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  4. आँखों के अश्क में
    शब्द सभी नहाते रहे ,
    रात के अँधेरे में
    ख्याल लड़खड़ाते रहे ,
    हृदय स्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।

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