संदेश

सभी नज़रो का ग़लत अनुमान ,गधा महान

हर बात पे गधा कहना , है कितना आसान किसी की बेवकूफी पे कहना ये ,है बहुत आम , गधा अपने गुणों से है बहुत महान , सहनशील ,मेहनती ,धीर ,गंभीर व शांत , ये सभी तो है महात्माओं के निशान , सीधे ,सादे ,सच्चे लोगो की है पहचान , बेचारा गधा ख़ास ,फिर भी है बदनाम , वेवज़ह सूली पे लटक रहा सरेआम , आगे जब भी दे , किसी को ऐसा सम्मान , सोचिये ,आप दे रहे उनको क्या स्थान ?

शक के दायरे में

हर बात पे लोग टांग अडाने लगे है , पत्थर मार कर घर में झाँकने लगे है , कानो को चिपका कर सुनने लगे है , फिर भी तसल्ली न वे पा सके हैं , तो शगूफे वो अपने उडाने लगे है , और मन गढ़त किस्से बनाने लगे है , हर बात उनकी समझ से परे है , फिर भी कोशिशों में बराबर लगे है

शक के दायरे में

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हर बात पे लोग टांग अडाने लगे है , पत्थर मार कर घर में झांकने ल गे है , कानों को चिपका कर सुनने लगे है , फिर भी तसल्ली न वे पा सके हैं , तो शगूफे वो अपने उडाने लगे है , और म न गढ़त किस्से बनाने लगे है , हर बात उनकी समझ से परे है , फिर भी कोशिशों में बराबर लगे है

ज़िन्दगी

ये धूली-धूली सी , ये महकी -महकी सी । ओस के बिखरे बूंदों सी , हवा सी बहती जाए आहिस्ते सरकती जाये कही , इसे सुबह की प्याली सी चुस्की लेते हुए हर कही पीते जा रहे है सभी , ये ज़िन्दगी जी रहे है सभी , कही -कही अनसुनी सी , कभी सूनी -सूनी सी , कुछ कहते अपने में ही , कुछ कहते - कहते ठहरी , गुमसुम सी होकर खड़ी , हलकी मुस्कान की लिए हँसी , लपेटे चल रहे हैं सभी ये ज़िन्दगी जी रहे हैं सभी , ये ज़िन्दगी है सब को प्यारी हर पन्ने पर लिखती कहानी नई , मन को जोड़ती हुई सुबह से शाम चलती यूँ ही रात को थक कर सो जाती आंखों पर रखकर सपने कहीं चाहें हँसी चाहें नमी ये ज़िन्दगी जी रहे हैं सभी

'राजीव के स्मृति में '

आज फिर पलके भीग आई , आज फिर खोई पुरवा लौट आई , कुछ वर्षो पूर्व जो , खो गया अतीत में आज इतिहास बनकर लहराई , वह खौफनाक हादसा जो , तुम्हे हमसे जुदा कर गई , यही हादसा याद बनकर आंखों में फिर उतर गई , उम्मीद हमें अभी भी है तुम्हारी वापसी की , तुम आओगे उजाला बनकर शीतल चांदनी का , राष्ट्र का कण -कण है , अभी भी तुम्हे पुकारता तुम्हारी याद में हर वर्ष , है ये आंसू बहाता , इस राष्ट्र को तुम्हारा ही कर्णधार चाहिए , उद्धार हो इस देश का ऐसा दिव्य पुरूष चाहिए

संशय

अनजान से रास्ते , पहचान लिए साथ में , चल रहे हम दिशा की ख़बर नही , चाह फिर भी , बढ़ने की , राह तो कही नही , भूल रहे हम

तकाजा

कुछ इज़हार है , कुछ इकरार है , अहसासों का ये दरबार है , चाहो तो , कुछ तुम भी कह लो , दिल के बोझ को कम कर लो , फिर ऐसे मौके कब आयेंगे , जहाँ हाल दिल के कह पायेंगे , दोष न देना ऐसे मौके को , ये खता न ख़ुद से होने दो