संदेश

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है कठिन जमाना लिए कठिन दर्द अन्याय की दीवारों में , जख्मो की बेड़िया पड़ी हुई है परवशता के विचारो में । रोते -रोते शमा के अश्क बदल गये अब सिसकियो में , हर दर्द उठाती है मुस्कान इस बेदर्द जमाने में । छुपाये नही छिपते है आंसू हकीकत के इन आँखों में , एक जीत नजर आती है जिंदगी जीवन के इन हारो में । रात को रौशन कर देगी कभी चाँदनी अपने उजालो में ।

सब का मालिक एक है

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ईश्वर हो या अल्लाह वो कहता बस यही , हमे न चाहिए कोई जमीं और न इमारत बड़ी -बड़ी । मैं तो हूँ कण -कण में जीवन के हर धड़कन में , याद करोगे जिस जगह मिलूंगा तुम्हे मैं वही । नाम हमे चाहे जो दे दो इबादत तो है एक ही , बाँट रहे हो क्यों हमको हम तो है सबके ही । मैं तो नेक इरादों में मानवता की राहो में , प्रेम के निर्मल भावो में इंसानियत से बढ़कर नही होता धर्म कोई । धर्म सभी होते है सच्चे अहसास सभी होते एक से , वही इनायत बरसेगी फर्क जहां न होगा कोई । हमने तो नही सिखाया तुम्हे करना भेद कभी , न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम है केवल यहाँ इंसान सभी । ......................................................... इस रचना को फैसले के पहले ही डालना था ,इसे मैं भोपाल में लिखी रही जब वहां गयी थी ,उस समय गणेश चतुर्थी रही मगर लौटने के बाद सोचते -सोचते समय निकल गया फिर संकोच में नही डाल सकी ,मगर कल अपने मित्र के यहाँ जाकर जब इसे पढायी तो उसने कहा तुरंत डाल दो ,और आज डाल पा...

छोटी छोटी रचनाये

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जिंदगी यूं ही गुजरती है यहाँ दर्द के पनाहों में , क्षण -क्षण रह गुजर करते है पले कांटो भरी राहो में । .................................................... हर दिन गुजर जाता है वक़्त के दौड़ में , आवाज विलीन हो जाती है इंसानों के शोर में । ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, वफ़ा तब मोड़ लेती है जमाने के आगे , न जलते हो कोई जब उम्मीदों के सितारे । ===================== उन आवाजो में पड़ गई दरारे जिन आवाजो के थे सहारे । >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> अपनो के शहर में ढूँढे अपने , पर मिले पराये और झूठे सपने । अनामिका के आग्रह पर बचपन की कुछ और रचनाये डाल रही हूँ , जो दसवी तथा ग्यारहवी कक्षा की लिखी हुई है ।

आपसी द्वेष

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रिश्तों के आपसी द्वेष , परिवार का समीकरण ही बदल देते है , घर के क्लेश से दीवार चीख उठती है , नफरत इर्ष्या दीमक की भांति , मन को खोखला करती है , ज़िन्दगी हर लम्हों के साथ क़यामत का इन्तजार करती कटती है । और विश्वास चिथड़े से लिपट सिसकियाँ भरती है ।

याचना

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आहिस्ते -आहिस्ते आती शाम ढलते सूरज को करके सलाम , कल सुबह जो आओगे लपेटे सुनहरी लालिमा तुम , आशाओं की किरणे फैलाना मंजूर करे जिससे , ये मन । कण -कण पुलकित हो जाए तुम ऐसी उम्मीद जगाना , जन -जन में भरकर निराशा न रोज की तरह ढल जाना , आशाओ के साथ उदय हो खुशियों की किरणे बिखराना, करती आशापूर्ण याचना हाथ जोड़कर आती शाम , रवि तुम्हे संध्या बेला पर करू उम्मीदों भरा सलाम ।

फकीर

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ये रास्ते है अदब के कश्ती मोड़ लो , माझी किसी और साहिल पे चलो । हम है नही खुदा न है खास ही , राहे - तलब अपनी कुछ है और ही । नाराजगी का यहाँ सामान नही बनना , वेवजह खुद को रुसवा नही करना । बे अदब से गर्मी माहौल में बढ़ जायेगी , कारण तकलीफ की हमसे जुड़ जायेगी । हमें हजम नही होती इतनी अदब अदायगी , चलते है साथ लिए सदा सच्चाई - सादगी । फितरत हमें खुदा ने बख्शी है फकीर की , ले चलो मोड़ कर मुझे अपनी राह ही ।

धुंध

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अश्को का सैलाब डबडबा रहा है आंखों में , फिर भी एक बूँद पलको पर नही , निशब्द खामोशी भरी उदासी कहने को बहुत कुछ पास में , परन्तु बिखरी है संशय की धुंध भरी नमी सी , कितनी दुविधापूर्ण स्थिति होती है यकीन की ।