युग परिवर्तन
न तुलसी होंगे, न राम
न अयोध्या नगरी जैसी शान .
न धरती से निकलेगी सीता ,
न होगा राजा जनक का धाम .
फिर नारी कैसे बन जाये
दूसरी सीता यहां पर ,
कैसे वो सब सहे जो
संभव नही यहां पर .
अपने अपने युग के अनुसार ही
जीवन की कहानी बनती है ,
युग परिवर्तन के साथ
सटीक बात । लोग चाहते कि बस नारी सीता जैसी रहे । सार्थक सोच
जवाब देंहटाएंगागर में सागर । कह दी सारी बात ।
जवाब देंहटाएंअनुपम ।
नारी के लिए समाज का दृष्टिकोण किसी युग में नहीं बदला।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना।
सादर।
सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
आभार
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंयुग परिवर्तन के साथ नारी का बदलना जरूरी भी है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन।
मूल स्वभाव वही रहेगा भूमिकाएं बदलती रहेंगी.
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