सोमवार, 27 जुलाई 2009

खट्टी -मीठी बात

हर रोज़ ज़िन्दगी की एक


नई कहानी होती है ।


इस गुजरते वक्त की न जाने


क्या -क्या मेहरबानियाँ होती है ।





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कहाँ जाना था ,कहाँ से


गुजर गए हम ।


इस तूफानी रात के साये से


लिपट गए हम ।





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कई ख्वाहिशे इर्द -गिर्द समेटे


इंसान जीता है ,


किसी को तोड़ता व


किसी को जोड़ता है ।





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किसी बिम्ब को आप


प्रतिबिम्ब बना लीजिये ,


आइने में जिसे चाहे



उसे छुपा लीजिये ।





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अमृत

के प्यालो

में ,

विष भी ज़रा -ज़रा

गुनाहगारों में

शामिल हो रहे सभी यहाँ ।


5 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे तो ये बहुत मीठी लगी ज्योति जी!

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  2. खूबसूरत सब छनिकाएं ........... जीवन के आस पास बिखरी हुयी ...........

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  3. ज्योति जी,

    आप इन्हें बेशक क्षणिकायें कहें, हम तो दुनियानामा कहेंगे, जो देखा वह बयाँ किया। बहुत अच्छा लिखा है।

    पत्रिका-गुंजन

    आपका स्वागत है, एक साहित्यिक पहल से जुड़ने के लिये।

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