शनिवार, 3 अप्रैल 2010

बदल गये ......



इतने जख्म मिले कि अब संभल गये


बात अब तुममे वो नही ,बदल गये


एतबार के सहारे सफ़र आगाज़ किया


जो छूट गया तुमसे तो ,हम थम गये


फासले बढ़ते - बढ़ते .मिट गये कही


रिश्ते जो दरम्यान रहे ,नही रह गये


मौत को ढकेल जिजीविषा बढ़ गयी


रात बड़ी और दिन अब सिमट गये


गमे-जुल्म जिंदगी पे ढाते कब तलक


तुम जो बदले तो ,हम भी बदल गये

17 टिप्‍पणियां:

  1. एक-एक शब्द विश्वास और एतबार से जिंदगी पर हुए गमे-जुल्म को बयां कर रहा है .... बहुत ही सुंदर कविता ... जीवन की सच्चाई बयां करती ।

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  2. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

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  3. तुम जो बदले तो हम भी बदल गए,
    बहुत सुन्दर रचना है लेकिन मेरे ख्याल में ये इससे भी सुन्दर बन सकती है, यदि शब्दों का थोडा फेरबदल किया जाए.

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  4. गमे-जुल्म जिंदगी पे ढाते कब तलक
    तुम जो बदले तो ,हम भी बदल गये ।

    Atyant bhavpurn aur umda prastuti.Tasveer bhi mohak hai.Shubkamnayen.

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी

    गमे-जुल्म जिंदगी पे ढाते कब तलक
    तुम जो बदले तो ,हम भी बदल गये

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  6. तुम जो बदले तो हम भी बदल गये ,.....
    ऐसा ही होता है वक़्त की दौड़ में .... जीवन की सच्चाई बयां करती कविता .....

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  7. गमे-जुल्म जिंदगी पे ढाते कब तलक

    तुम जो बदले तो ,हम भी बदल गये ।

    bahut gahre bhav liye hai har pankti...........
    bahut sunder abhivykti......

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  8. ज्योति सिंह जी'
    अभिवंदन
    "बदल गए " ग़ज़ल पढ़ी,
    अच्छा लगा.

    "एतबार के सहारे सफ़र आगाज़ किया

    जो छूट गया तुमसे तो, हम थम गये "

    उपरोक्त शेर बहुत अच्छा कहा है आपने.
    - विजय तिवारी ' किसल

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