रविवार, 9 मई 2010

माँ ..... ........


एक वृक्ष की तरह
अटल ,स्थिर ,शांत
धीर -गंभीर सी ,
ये माँ
अपने बच्चो को
सदा फल वो
छाया देती ही रही ,
इशारों में ही हर जरूरत ,
समझ कर पूरी
करती रही
बिना कहे दर्द सभी
भांप कर ,
एक मरहम बनकर
चोंट हमारी
मिटाती रही
खुद मुरझा कर
हमारे अरमान सींचती रही
इतनी सच्ची ' माँ',
अपने सिवा सबका
ख्याल रखने वाली
ऐसी माँ की
क्या इच्छा है ?
कभी जानने की भी
हमने कोशिश की
मन में है कई
बाते उसकी ,
कभी पूछो तो
आकाश बन जाएगा
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जिसने जिंदगी के साथ -साथ
जीने का तजुर्बा भी दिया ,
उसके अहसास ,जज्बात को,
समझने की फुर्सत, हमें नही
.....................................................
माँ तुम्हे शत -शत नमन


23 टिप्‍पणियां:

  1. माँ के आँचल में हम आज हमारे नहीं उसके ही अरमान बांधेगे ..................पल्लू से उसके कोई ममता भरी कहानी कह देगे .................

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  2. आज के दिवस को समर्पित ये कविता प्रेरक है। मां को नमन।

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  3. बहुत सुंदर कविता ओर बहुत सुंदर चित्र

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  4. Sach kaha...kayi baar ham apne priyjanon ka pyar apna haq maan lete hain...aaj maine apni maa ko phone pe kaha," Aapki yaad to waise mujhe rozhi aati hai..guzarte dinon ke saath,taqreeban har waqt.."
    Kuchh der baad unka palatke phone aya:" Tune mujhe khaas phone karke bataya...mujhe behad achha laga.."
    Maa ke runse mai kabhi mukt hona bhi nahi chahti..lekin kabhi kabhar unse kah to sakti hun,ki wah mere liye kitni ahmiyat rakhti hain..

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  5. Jyotiji,meri 'Simte lamhen'pe likhi post zaroor padhen..

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  6. अटल,स्थिर,शान्त,धीर,गम्भीर ,बिना कहे दर्द का अहसास कर लेना और एक छायादार ब्रक्ष की तरह साया और फल देना ,खुद मुरझा कर बच्चों के अरमानों को पूरा करने वाली ""अपने सिवाय सबका ख्याल रखना "(अति सुन्दर लाइन)मां का ख्याल रखने वाले उसका हालचाल पूछने वाले अंगुली पर गिने जाने लायक ही है ।तभी श्री तरुणसागर जी को अपने प्रवचन मे कहना पडता है कि बूढे मा बाप को घर से मत निकालो "वर्तमान परिवेश मे मां के ऊपर बहुत अच्छी रचना

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  7. बहुत सुन्दर रचना...माँ के प्रति सुन्दर भाव

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  8. माँ पर लिखी हर रचना लाजवाब होती है ज्योति जी ...और आप तो लिखती ही बढ़िया हैं ....!!

    बहुत खूब ......!!

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  9. ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
    जिसने जिंदगी के साथ -साथ
    जीने का तजुर्बा भी दिया ,
    उसके अहसास ,जज्बात को,
    समझने की फुर्सत, हमें नही ।

    बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता

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  10. बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने !

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  11. माँ सिर्फ माँ होती है, हर माँ की वही ख्वाहिश और वही त्याग . हर हाल में वन्दनीय है. उसके ऋण को कोई भी कभी भी नहीं उतर सकता .
    बहुत सुन्दर रचना.

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  12. jyotijee maine abhee dekha meree tipannee hai hee nahee maine aapkee post padee thee aur man hee man bahut saraha bhee the aur dekhiye bina comment print kiye chalee gayee........ye bhullakadpan hee to hai........
    ma ise rishte ko naman...........
    ye bhee ittefak hee hai ki mai bhee unhee dino bahar ja rahee hoo vapasee mahine ke aakhir me hee hogee.
    happy journey......

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  13. bahut hi sundar kavita..maa ko samarpit..
    is prernadaayi kavita ke liye aapka aabhaar..
    dhnywaad..

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  14. सच कहा ... भगा भागी में माँ की अहमियत हम नही समझ रहे .... अच्छी रचना है ...

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  15. बहुत ही अच्छी कविता लिखी है ज्योति जी आप ने.
    माँ की ममता ,उसका समर्पण अद्भुत है..अतुलनीय !
    'माँ तुम्हे शत -शत नमन'

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  16. Maa -ham jitna bhi likhe kam hai.. aapne bahut achchha likha..

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  17. वाह... ! सुन्दर...! आप की प्रतिभा की तारीफ हम करते है! लिखते रहो...!

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