मंगलवार, 11 मई 2010

एक वो रात


वो राते लम्बी होती है

जब तन्हाई डसती है ,

यादे बोझिल होती है

तब ये नींद कहाँ पे सोती है ,

ये रात जो मुझ पे भारी है

आँखों-आँखों में कटती है ,

करवट की आहट होती है

लिए दर्द मचलती रहती है ,

नींद को तलाशते ,

आँखों में सुबह होती है ।

15 टिप्‍पणियां:

  1. Aapki rachnayen din prati din nikharti jaa rahi hain..Mauzoom shabdawali aur pravah,dono eksaath..!

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  2. मन की पवित्रता का परिचय देती सुंदर कविता

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  3. baichenee ka ehsaas liye dil ko choo jane walee abhivykti......

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  4. ये रात जो मुझ पे भारी है
    आँखों-आँखों में कटती है ,

    रात के बाद सुबह आती है।

    नींद को तलाशते ,
    आँखों में सुबह होती है ।

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  5. सारी रात न जाने ये नींद कहाँ सोती है आँखों से दूर !

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  6. ये नींद कहाँ पे सोती है?????
    अच्छे हैं मन के ये उद्दगार उदगारनिरुत्तर ही कर दिया

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  7. ये नींद कहाँ पे सोती है ??
    यही सवाल है ...और जवाब सुबह तक बस ढूंढते हैं !

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  8. सम्पूर्ण रचना अच्छी लगी ..सुन्दर भावो की अभिव्यक्ति .....बहुत खूब ....धन्यवाद

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  9. Sach hai itezaar ki raaten bahut hi lambee hoti hain ... tanhaai use aur lamba kar deti hai ... lajawaab ...

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  10. तन्हाई के लम्हों का प्रभावशाली वर्णन.

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  11. बहुत सुन्दर कविता...प्यारा चित्र भी..बधाई.
    _______________
    'पाखी की दुनिया' में आज मेरी ड्राइंग देखें...

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