सोमवार, 14 जून 2010

चल तो लूंगी ..........


कब तक और ____
कहाँ तक
इन्तजार में खड़े रहकर
तुम्हारे सहारे को तकते रहें __
कभी तो
कहीं तो
तुम छोड़ ही दोगे
ऊब कर
बैसाखी तो हो नही
जो पास में रख लू
इतना ही काफी है
जो तुमने खड़ा कर दिया ___
दौड़ भले पाऊं
तुम्हारे बगैर ,
मगर चल तो लूंगी अब ,
धीरे -धीरे ही सही
गिरते -पड़ते लड़खड़ाते ,
एक दिन दौड़ने भी लगूंगी

16 टिप्‍पणियां:

  1. मगर चल तो लूंगी अब ,
    धीरे -धीरे ही सही
    गिरते -पड़ते लड़खड़ाते ,
    एक दिन दौड़ने भी लगूंगी ।

    कितना सुन्दर लिखा है..... बहुत खूब

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  2. Saral seedhee bhasha,aur vichar...to rachna apne aap sundar ban padti hai!

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  3. कभी तो
    कहीं तो
    तुम छोड़ ही दोगे
    ऊब कर ।
    बैसाखी तो हो नही
    जो पास में रख लू ।
    बहुत सुन्दर रचना है ज्योति. सच कहूं, तो तुम्हारी अब तक पोस्ट की गयीं तमाम कविताओं में से सबसे अच्छी लगी. इसी तरह लिखती रहो. शुभकामनाएं.

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  4. बहुत ही आत्मविश्वास भरा कथन!
    सकारात्मक सोच ही व्यक्ति को आगे बढ़ते रहने का हौसला देती है..
    ज्योति जी बहुत अच्छी कविता है...आप की बेहतरीन रचनाओं में से एक.

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  5. सच ही कहा है अपने, जब कुछ करने की इच्छा हो, बस जरा सा सहारा मिल जाये तो हम दौड़ ही नहीं सकते अव्वल भी आ सकते हैं.
    आभार

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  6. हौसला हो मन में तो सब हो जाता है....अच्छी रचना..चलना नहीं दौडना है...

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  7. sada kee bhanti sunder abhivykti..........
    vishvas swatah par isekee jhalak acchee lagee....

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  8. सीधे सीधे जीवन से जुड़ी रस कविता में नैराश्य कहीं नहीं दीखता। एक अदम्य जिजीविषा का भाव कविता में इस भाव की अभिव्यक्ति हुई है।

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  9. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं.
    आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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  10. अपने पैरों का भरोसा ही तो आत्मविश्वास है और इससे ही आसमान छुआ जा सकता है.
    एक विश्वास को उजागर करती हुई रचना बहुत सुन्दर.

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  11. बहुत बहुत शुक्रिया ,
    अपने -पराये . काव्यांजलि ;दोनों ब्लॉग अच्छे लगे .

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  12. सभी मित्रो का दिल से शुक्रिया साथ चलने के liye

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  13. आमीन ... आशा भारी रचना ... दिल को छू गयी ...

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