शुक्रवार, 18 जून 2010

ख्वाब ...


ख्वाब एक
निराधार
बेल की तरह,
बेलगाम
ख्याल की तरह ,
असहाय डोलती
कल्पना है ,
जो हर वक़्त
कब्र खोद कर ही
ऊँची उड़ान भरती है ,
क्योंकि
उसका दम तोड़ना
निश्चित है

17 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत खूब ......!!

    ख्वाब कब्र खोद कर ही उडान भरते हैं .......!!

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  2. ज्योति जी ,बहुत बढ़िया कविता सत्यता पर आधारित
    बधाई

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  3. वाह.. बहुत सुन्दर कविता है.
    कल्पना है ,
    जो हर वक़्त
    कब्र खोद कर ही
    ऊँची उड़ान भरती है ,
    क्योंकि
    उसका दम तोड़ना
    निश्चित है ।
    बहुत सुन्दर.

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  4. कितनी सहजता से इतनी बड़ी बात को सामने रख दिया....बहुत ही बढ़िया

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  5. सुंदर ...ख्वाब बेलगाम ख्याल है जो अपनी कब्र पर ही उड़ान भरता है । सुंदर दर्शन ...

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  6. बहुत सुंदर जी, साथ मै चित्र भी मन भावन धन्यवाद

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  7. बहुत अच्छी लगी कविता. एकदम नयी सोच है... नयी कल्पना... ख़्वाब कब्र खोदकर उड़ान भरते हैं... कोई सोच भी नहीं सकता.

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  8. बहुत खूब ।शायद अभी तक आपके द्वारा लिखी ग ई कविताओ मेँ से सबसे बेहतरीन कविता

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  9. ज्योति जी, इस कविता में भाव स्पष्ट हैं, अच्छी कविता.

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  10. ख्वाब असहाय डोलती कल्पना....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  11. एकदम नयी सोच है बहुत खूब ......!!
    ख्वाब एक
    निराधार
    बेल की तरह,
    कल्पना है ,
    जो हर वक़्त
    कब्र खोद कर ही
    ऊँची उड़ान भरती

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  12. ख्वाब का अंत तो निश्चित ही है ... बहुत अच्छा लिखा है ...

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  13. Are! Yah rachana meri blog soochi me kyon na dikhayi dee?

    Chhoti-si yah rachna,kitni vilakshan badi aur gahari baat kahti hai!

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  14. वाह्……………गज़ब के भाव उमडे हैं……………अति सुन्दर्।

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