गुरुवार, 1 जुलाई 2010


शाम से लेकर सुबह का इन्तजार
इन दो पहरों में दूरियाँ हुई हजार

फासले बढ़ते रहे लेकर तेज रफ़्तार
बेताबी करती रही दिल को बेकरार

मिटने लगी दूरियाँ आने से उसके आज
बढ़ने लगी बैचेनियाँ हर आहट के साथ

नजदीकियां करने लगी ख़ामोशी इख्तियार
देखकर हम उनको सामने करेंगे क्या बात

मिनटों में यहाँ आये कितने सारे ख्याल
फुर्सत में भी रहे जिनसे हम बेख्याल

जाने क्या रंग लाएगी अपनी ये मुलाकात
पत्थर हो जाये दिल के सब जज़्बात

20 टिप्‍पणियां:

  1. जाने क्या रंग लाऐगी अपनी ये मुलाकात
    ज्योती जी लिखते रहिये,सानदार प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार


    सुप्रसिद्ध साहित्यकार व ब्लागर गिरीश पंकज जीका इंटरव्यू पढने के लिऐयहाँ क्लिक करेँ >>>>
    एक बार अवश्य पढेँ

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  2. Jyoti ji,yah seedhee saral rachana bahut pasand aayi...shabdon ka aadambar nahi,par gahrayi hai...

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  3. जाने क्या रंग लाएगी अपनी ये मुलाकात
    पत्थर न हो जाये दिल के सब जज़्बात ।
    वाह ! क्या खूब !
    ऐसा ही होता है जब कितना कुछ कहने के लिए सोचते हैं मगर जब आमने सामने आते हैं सब कुछ भूल जाते हैं.
    सुन्दर रचना.

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  4. bahut sunder abhivykti manahsthitee aur usakee kashmkash ko lekar........
    bhabheepost per aapke udgar dravit kar gaye.......
    Aabhar

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  5. प्यार और साँसों की भाषा .... अद्भुत

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  6. बहुत जज़्बातों से लिखी खूबसूरत रचना...

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  7. ज्योति जी . कितना सहज . कितना सरस और अनुभूत स्वर है आपकी मिलनान्तर को वाणी देती हुयी रचना का ।

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  8. ज्योति जी . कितना सहज . कितना सरस और अनुभूत स्वर है आपकी मिलनान्तर को वाणी देती हुयी रचना का ।

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  9. सच है इंतजार में तो एक एक पल एक दिन सा ही लगता है और फिर जब वो सामने हो तो कुछ सूझता ही नहीं

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  10. जाने क्या रंग लाएगी अपनी ये मुलाकात
    पत्थर न हो जाये दिल के सब जज़्बात

    bahut hi khoobsurat pankiyaan..
    bahut acchi lagin..
    dhnywaad..

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  11. सच कहा है ... कभी कभी कुछ पलों में जीवन भर की दूरी आ जाती है ...

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  12. मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  13. गहरे जज्बातों से भरी हुई सुंदर रचना ।

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