अपनी राह .....
ये रास्ते है अदब के
कश्ती मोड़ लो ,
माझी किसी और
साहिल पे चलो ।
हम है नही खुदा
न है खास ही ,
राहे - तलब अपनी
कुछ है और ही ।
नाराजगी का यहाँ
सामान नही बनना ,
वेवजह खुद को
रुसवा नही करना ।
बे अदब से गर्मी
माहौल में बढ़ जायेगी ,
कारण तकलीफ की
हमसे जुड़ जायेगी ।
हमें हजम नही होती
इतनी अदब अदायगी ,
चलते है साथ लिए
सदा सच्चाई -सादगी ।
फितरत हमें खुदा ने
बख्शी है फकीर की ,
ले चलो मोड़ कर
मुझे अपनी राह ही ।
टिप्पणियाँ
सामान नही बनना,
वेवजह खुद को
रुसवा नही करना ।
दिल को छू गई ये पंक्तियाँ , आपका तहेदिल से आभार आपकी प्रतिक्रिया पा कर मैं हर्ष से अभिभूत हूँ।
बहुत ही खूबसूरत रचना
जहाँ जाने पहचाने रास्ते हों, न छल कपट हो ... अच्छी रचना है ...