ये रास्ते है अदब के
कश्ती मोड़ लो ,
माझी किसी और
साहिल पे चलो ।
हम है नही खुदा
न है खास ही ,
राहे - तलब अपनी
कुछ है और ही ।
नाराजगी का यहाँ
सामान नही बनना ,
वेवजह खुद को
रुसवा नही करना ।
बे अदब से गर्मी
माहौल में बढ़ जायेगी ,
कारण तकलीफ की
हमसे जुड़ जायेगी ।
हमें हजम नही होती
इतनी अदब अदायगी ,
चलते है साथ लिए
सदा सच्चाई -सादगी ।
फितरत हमें खुदा ने
बख्शी है फकीर की ,
ले चलो मोड़ कर
मुझे अपनी राह ही ।
11 टिप्पणियां:
नाराजगी का यहाँ
सामान नही बनना,
वेवजह खुद को
रुसवा नही करना ।
दिल को छू गई ये पंक्तियाँ , आपका तहेदिल से आभार आपकी प्रतिक्रिया पा कर मैं हर्ष से अभिभूत हूँ।
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 06 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुंदर रचना
वाह क्या बात है बहुत सुंदर रचना. पढ़ कर एक नई उर्जा सी आ गई मन में !
वाह....
बहुत ही खूबसूरत रचना
आप सभी की आभारी हूँ ,धन्यवाद आप सभी का तहे दिल से
वाहह्हह.. क्या बात है..बहुत खूब👍👌👌
बहुत खूब ... राह वही अच्छी जो खुद की हो ...
जहाँ जाने पहचाने रास्ते हों, न छल कपट हो ... अच्छी रचना है ...
तहे दिल से शुक्रियां आप सभी का
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