हम.......

हम ........

मै को अकेले रहना था

 हम को साथ चलना था

एक को खुद के लिए जीना था

 एक को सबके लिए जीना था ,

 इसलिए सबकुछ होते हुए भी  

मै यहाँ कंगाल रहा

 कुछ नही होते हुए भी

 हम मालामाल रहा ।

टिप्पणियाँ

ज्योति सिंह ने कहा…
जय माता की ,धन्यवाद ,हृदय से आपकी आभारी हूँ मैं
Pammi singh'tripti' ने कहा…
सार्थक रचना।
मन की वीणा ने कहा…
वाह वाह बहुत खूब।
रेणु ने कहा…
जब मैं था तब हरि नहीं -- अब हरि हैं मैं नाही
प्रेम गली अति सांकरी - टा में दो ना समाहि!!!!!!!!!
आपकी रचना पढ़कर यही याद आया | मैं में सब होकर भी कंगाली है और हम में कुछ ना होकर भी खुश हाली है | सुंदर अर्थपूर्ण रचना | सस्नेह हार्दिक शुभकामनायें |
Sudha Devrani ने कहा…
वाह!!!
बहुत सुन्दर...
बहुत खूब....भावों की बहुत प्रभावी और सशक्त प्रस्तुति.

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