धीरे - धीरे यह अहसास हो रहा है ,
वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है।
कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़ ,
आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है।
*************************
इन्तहां हो रही है खामोशी की ,
वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं।
****************************
जिंदगी है दोस्त हमारी ,
कभी इससे दुश्मनी ,
कभी है इससे यारी।
रूठने - मनाने के सिलसिले में ,
हो गई कहीं और प्यारी ।
****************************
इस इज़हार में इकरार
नज़रंदाज़ सा है कहीं ,
थामते रह गए ज़रूरत को ,
चाहत का नामोनिशान नहीं।
...................................................
ये बहुत पुरानी रचना है किसी के कहने पर फिर से पोस्ट कर रही हूँ ।
टिप्पणियाँ
प्रेम गली अति सांकरी - टा में दो ना समाहि!!!!!!!!!
आपकी रचना पढ़कर यही याद आया | मैं में सब होकर भी कंगाली है और हम में कुछ ना होकर भी खुश हाली है | सुंदर अर्थपूर्ण रचना | सस्नेह हार्दिक शुभकामनायें |
बहुत सुन्दर...