मानवता का स्वप्न
कैसा दुर्भाग्य ? तेरा भाग्य
सर्वोदय की कल्पना ,
बुनता हुआ विचार,
स्वर्णिम कल्पना को आकार देता ,
खंडित करता , फिर
उधेड़ देता लोगों का विश्वास ,
नवोदय का आधार
फिर भी आंखों में अन्धकार ।
इच्छाओं की साँस का
घोटता हुआ दम ,
अन्तः मन का द्वंद प्रतिक्षण ।
भाव - विह्वल हो कांपता ,
अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,
टूट कर भी निःशब्द ,
मानवता का 'स्वप्न '
14 टिप्पणियां:
कुछ पंक्तियाँ मेरी आपकी रचना के सम्मान में-
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मानवता स्वप्न हो जाये तो मानव का क्या होगा?
मानवता दफन हो जाये तो मानव का क्या होगा?
प्रश्न तो यह भी है भाव विह्वलता, खंडित विश्वास
विलीन हो जाये संवेदना, तो मानव का क्या होगा?
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गहन मंथन को आमंत्रित करती सुंदर रचना ज्योति जी।
बहुत ही सुंदर स्वेता जी ,बहुत बहुत धन्यवाद आपका ,बिल्कुल सही कह रही है आप ,
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 28 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (22-06-2020) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक 3747)' पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
भाव - विह्वल हो कांपता ,
अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,
टूट कर भी निःशब्द ,
मानवता का 'स्वप्न '....
एक सत्य को आईना दिखाती इस रचना हेतु साधुवाद आदरणीय ज्योति जी।
बहुत सुंदर।
बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई।
भाव - विह्वल हो कांपता ,
अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,
टूट कर भी निःशब्द ,
मानवता का 'स्वप्न '....
भावपूर्ण सृजन ज्योति जी ।
बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आपका आदरणीय दी .
सादर
स्वप्न बन कर रह गई है मानवता आज ...
सत्य का सूत्र थाने भावपूर्ण रचना ...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
मानवता की बात अब स्वप्न समान ही है
बहुत सुन्दर
सभी रचनाकारों को तहे दिल से शुक्रिया ,आप सभी की टिप्पणियों के प्रत्येक शब्द अनमोल है ,ये हमे प्रोत्साहित किया करते हैं ,आप सभी का हार्दिक आभार ,सभी को नमस्कार
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