संदेश

तन्हा

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भ यभीत हूँ कही ये युग बहुत ऊंचाई तक पहुँचने के प्रयास में नई तकनीक की तलाश में अपना वजूद न मिटा दे , महाप्रलय के शिकंजे में फंस कर अपना आधार न गवा दे , आज हमें सिर्फ तन्हा होने का ख्याल डस रहा है , कल सारी धरती ही तन्हा न हो जाये ______ l

सन्नाटा

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चीर कर सन्नाटा श्मशान का सवाल उठाया मैंने , होते हो आबाद हर रोज कितनी जानो से यहाँ फिर क्यों इतनी ख़ामोशी बिखरी है क्यों सन्नाटा छाया है यहाँ , हर एक लाश के आने पर तुम जश्न मनाओ आबाद हो रहा तुम्हारा जहां यह अहसास कराओ .

कुछ मन की

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जिंदगी वफ़ा की सूरत जब इख्तियार करती है हर कदम पर तब नए इम्तिहान से गुजरती है . .............................. ... कितनी सुबह निकल गई कितनी राते गुजर गई कुछ बाते पहली तारीख सी आज भी है यही कही . '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''' मंजिल इतनी आसान होती तो क्योकर तलाशते क्यों उम्र अपनी सारी यू दाव पर लगाते . ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; जो मजा सफ़र में है वो मंजिल में कहाँ थम जाती है जिंदगी सब कुछ पाकर यहाँ .

उम्मीद

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आइने में सभी सूरते एक सी नज़र आती है किसे कहे यहाँ अपना यही ख्याल लिए रह जाती है , तभी वो चेहरा दिखता है जिसका कोई अक्स भी नही , है वो निराकार , लेकिन मेरी कल्पनाओ को करता है वही साकार .

ममतामयी माँ

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माँ मेरी माँ और सबकी माँ जन्म से लेकर अंतिम श्वास तक जरूरत सबकी माँ जीवन की हर छोटी -छोटी बातों में याद बहुत आती माँ उसकी निश्छल ममता , करूणा है और कहाँ उसके आँचल तले जैसा है नही घनी छाँव यहाँ निस्वार्थ सर्वस्व लुटाने वाली त्याग की मूर्ती माँ मीठी लोरी से पलकों में स्वप्न सुन्दर भरती माँ सहलाकर नर्म हाथो से ठंडी राहत देती माँ बालो को कंघी से सुलझाने वाली माँ बड़े प्यार से निवाले को मुंह में भरती माँ उसके हाथों सा स्वाद मिलेगा हमें कहाँ , बच्चो के हर सुख -दुख को भांपने वाली माँ कहे बिना ही मन के हर भाव को पढ़ लेती माँ सबकी चिन्ताओ को अपने हृदय में समेटे माँ जीवन के हर मोड़ पर साथ निभाती माँ जन्नत उसके चरणों में है यहाँ बसा हुआ ईश्वर का ही रूप है दुनिया की हर माँ . ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, मातृ दिवस के पावन पर्व पर सबको ढेरो बधाई ,सभी माओ को नमन .सदा उसके स्नेह से मन हमारा सींचता रहें और जीवन हरा भरा रहें ,हम उनको आदर दे उनकी जरूरतों को समझे उनकी आह नही उनकी दुआए ले ,क्योंकि माँ ...
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अब गूंगे का जमाना नही शोर शराबे का है , लाठी चलाओ हल्ला मचाओ जबरदस्ती काम बनबाओ , यदि कोई सज्जन विरोध कर ये कहे अरे भाई क्या गुंडागर्दी है ? तभी बड़े रौब से सीना तानकर कहो जनाब ये हमारा हक है बस उसी का इस्तेमाल कर रहें है , आप फिजूल में ही एतराज कर रहें है ।

गुमां नहीं रहा

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जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा , आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ साथ के इसका एतबार नही रहा , मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा , जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा , देख कर तबाही का नजारा हर तरफ अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा , वर्तमान की काया विकृत होते देख भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा , सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l