टूट रहे सारे रिश्ते
कल के धीरे- धीरे
जुड़ रहे सारे रिश्ते
आज के धीरे - धीरे ,
समय बदल गया
सोच बदल गई
मंजिल की सब
दिशा बदल गई ,
हम ढल रहा है अब
मै में धीरे -धीरे
साथ रहने वाले अब
कट रहे धीरे -धीरे ,
सबका अपना आसमान है
सबकी अपनी जमीन हो गईं ,
एक छत के नीचे रहने
वालों की अब कमी हो गई ,
रीत बदल रही
धीरे - धीरे
प्रीत बदल रही
धीरे - धीरे ।
5 टिप्पणियां:
धन्यवाद यशोदा जी ,अवश्य आऊँगी नमस्कार
धीरे धीरे बहुत कुछ बदल रहा है ... रिश्ते बदल रहे हैं ... और हम भी तो बदल रहे हैं ...
अच्छी रचना है ...
बहुत सुंदर रचना आदरणीया
धीरे धीरे
बीज वृक्ष बनेगा ।
पर जो बोयेंगे
वही उगेगा ।
बहुत सुंदर ,तहे दिल से शुक्रिया दोस्तों
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