कहर कोरोना का

जिंदगी हादसों की शिकार हो गईं
चन्द रोज की यहां मेहमान हो गई।

न कोई आता है न कोई जाता है
सड़के कितनी सुनसान हो गई ।

सहमा -सहमा सा है हर एक मन
दूर रहने की शर्ते साथ हो गई ।

कोरोना का ढाया ऐसा कहर
आज की जिंदगी बर्बाद हो गई ।

कब पायेंगे निजात इस आफत से
यही फिक्र अब तो दिन रात हो गई ।

आया है जब से कोरोना दुनिया में
अरमानों की दुनिया राख हो गई ।

टिप्पणियाँ

बढ़िया कोरोना कविता 👍
पवन शर्मा ने कहा…
वाह....सुंदर
कोरोना ही दिन, कोरोना ही रात हो गई
अजय कुमार झा ने कहा…
अब तो ये महामारी जल्दी ख़त्म हो तो ही कुछ अलग सोच समझ सकें | सब कुछ आज इसी बीमारी के इर्द गिर्द सिमट कर रह गया है | सामयिक और सार्थक पंक्तियाँ
Vandita Gupta ने कहा…
Wah Jyoti
Sabke man ki bat kah dalsunder
आया है जब से कोरोना दुनिया में
अरमानों की दुनिया राख हो गई ।

सच है !

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