चाँद सिसकता रहा
शमा जलती रही ,
खामोशी को तोड़ता हुआ
दर्द कराहता रहा ,
और फ़साना उंगुलियां
कलम से दोहराती रही ,
आँखों के अश्क में
शब्द सभी नहाते रहे ,
रात के अँधेरे में
ख्याल लड़खड़ाते रहे ,
एक लम्बी आह में
शब्द एकदम से ठहर गए ,
उंगुलियां बेजान हो
साथ कलम का छोड़ गई ,
दर्द से लिपट
असहाय बनी रही ,
और लिखे क्या
बात लिखने की रही नहीं ,
इस तरह फ़साने गढे नहीं
रह गये अधूरे कही ,
शून्य सा समा बाँध
चाँद भी बेबस रहा ।
चाँद सिसकता रहा ....
9 टिप्पणियां:
मर्मस्पर्शी कविता !
आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर ,हार्दिक आभार
वाह...सुंदर!
चाँद की सिसकी, कलम का अफसाना
चाँद सिसकता रहा...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ज्योति जी । बधाई ह्रदय स्पर्शी रचना के लिये ।
और अफ़साना लिखा न गया... बहुत सुन्दर रचना।
आँखों के अश्क में
शब्द सभी नहाते रहे ,
रात के अँधेरे में
ख्याल लड़खड़ाते रहे ,
हृदय स्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय दी .
बहुत अच्छा लिखती हैं आप ।
एक टिप्पणी भेजें