काव्यांजलि
मंगलवार, 29 दिसंबर 2020
ये चाँद उतर कर जमीं पर तो आ..
गुरुवार, 24 दिसंबर 2020
ईसा मसीह
शनिवार, 4 जुलाई 2020
ख्वाब
मंगलवार, 30 जून 2020
संगत ........
स्वाती की बूँद का
निश्छल निर्मल रूप ,
पर जिस संगत में
समा गई
ढल गई उसी अनुरूप ।
केले की अंजलि में
रही वही निर्मल बूँद ,
अंक में बैठी सीप के
किया धारण
मोती का रूप ,
और गई ज्यो
संपर्क में सर्प के
हो गई विष स्वरुप ।
मनुष्य आचरण जन्म से
कदापि , होता नही कुरूप ,
ढलता जिस साँचे में
बनता उसका प्रतिरूप ।
शनिवार, 27 जून 2020
मानवता का स्वप्न
मानवता का स्वप्न
कैसा दुर्भाग्य ? तेरा भाग्य
सर्वोदय की कल्पना ,
बुनता हुआ विचार,
स्वर्णिम कल्पना को आकार देता ,
खंडित करता , फिर
उधेड़ देता लोगों का विश्वास ,
नवोदय का आधार
फिर भी आंखों में अन्धकार ।
इच्छाओं की साँस का
घोटता हुआ दम ,
अन्तः मन का द्वंद प्रतिक्षण ।
भाव - विह्वल हो कांपता ,
अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,
टूट कर भी निःशब्द ,
मानवता का 'स्वप्न '
बुधवार, 24 जून 2020
शिल्प-जतन
नीव उठाते वक़्त ही
कुछ पत्थर थे कम ,
तभी हिलने लगा
निर्मित स्वप्न निकेतन ।
उभर उठी दरारे भी व
बिखर गये कण -कण ,
लगी कांपने खिड़की
सुनकर भू -कंपन ,
दरवाजे भी सहम गये
थाम कर फिर धड़कन ।
टूट रहे थे धीरे धीरे
सारे गठबंधन
आस और विश्वास का
घुटने लगा दम
जरा सी चूक में
लगे टूटने सब बंधन ,
शिल्पी यदि जतन करता ,
लगाता स्नेह और
समानता का गारा ,
तब दीवारे भी बच जाती
दरकने से
छत भी बच जाती
चटकने से और
आंगन सूना न होता
संभल जाता ये भवन ।
सोमवार, 22 जून 2020
कुछ बूंदे कुछ फुहार
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कुछ बूंदे कुछ फुआर
तफसीर जब बेबसी का हुआ
त्यों ही मुलाकात आंसुओ ने किया ,
आगाज़ होते किस्से गमे-तफसील के साथ
पहले उसके अश्को ने गला रुंधा दिया ।
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जिसके चेहरे पे थी हँसी ,
वो भी थे उदासी का सबब लिए हुए ।
कौन कहता है कमबख्त ,
है गम नही सबको घेरे हुए ।
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छेड़कर ज़िक्र तो करो
रखकर दुखती - रग पर हाथ ,
जख्म उभरता नही फिर कैसे
सोये हुए दर्द के साथ ।
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उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
अब तो इस क़ैद से रिहा कर दे ।
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तलाशे कहाँ सुकून ऐसी जगह बता दे ,
बेवज़ह दर्द बढ़ाने की अब जगह न दे ।
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