बुधवार, 23 सितंबर 2015

जिन्दगी महक जाती है जब उम्मीद खिलखिलाती है , वर्ना सूरते एक मुस्कान देखने के लिये तरस जाती . .................. जिन्दगी से जितना लड़ोगे जीवन मे उतना आगे बढ़ोगे . जिन्दगी मे जितना सहोगे समझ से उतना आगे रहोगे .

शनिवार, 12 सितंबर 2015

रहीम जी का एक दोहा है - जो रहीम उत्तम प्रकृति का करत सकत कुसंग-- चंदन बिष व्यापत नही लिपटे रहे भुजंग . बात तो सही है ,जो इस दोहे मे कही गई है ,पर उनके लिये जिनमे धैर्य अपार मात्रा मे व्याप्त हो ,क्योकि ये बात आज के समय मे जरा मुश्किल सी मालूम होती है , चंदन एक पेड़ है जो मौन रहता है साथ मे सजीव होते हुये भी निर्जीव के समान है ,इसके तन-मन के लिये कोई भी हरकत या बात बेअसर है ,इसलिये चंदन पर बिष चढ़ने या लिपटे रहने से कुछ नही होता ,परन्तु मनुष्य चंदन की तरह होकर भी चंदन नही रह सकता ,क्योकि वह एक सजीव ,संवेदनशील प्राणी है ,उसे गलत बाते विचलित कर देती है और वह परेशानियो मे अपना संतुलन एवं धैर्य खोने लगता है ,मन को समझाना -संभालना इतना आसान नही होता तभी मनुष्य दिशा भटक जाता है ,वो पूर्ण रूप से चंदन की तरह स्थिरता और सहनशीलता बनाये नही रह सकता ,विरोध करना उसकी प्रकृति है ,अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना आदत .इसलिये उत्तम प्रकृति वाले ही कुसंग के चपेट मे अधिक आ रहे है .

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

औरत हर कदम पर आजमाईश की सूरत होती है ढल जाये जो हर हालात मे ऐसी ये मूरत होती है .

शुक्रवार, 12 जून 2015

दिल ........

दिल सुनता रहा
दिल सहता रहा ,
सब्र का सिलसिला
बस यूही चलता रहा .
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खामोशी मे कई बातो का आगाज होता है
टूटने पर ही इस बात का अहसास होता है .
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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

बचपन की तस्वीरे

बीते दिनो की हर बात निराली लगती है
बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है .
पहली बारिश की बूंदो मे
मिलकर खूब नहाते थे ,
ढेरो ओले के टुकड़े को
बिन बिन कर ले आते थे .
इन बातो मे शैतानी जरूर झलकती है
 बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती हैै .
सावन के आते ही पेड़ो पर
झूले पड़ जाते थे ,
बारिश के  पानी मे बच्चे
कागज की नाव बहाते थे ,
बिना सवारी  की वो नाव भी अच्छी लगती है 
बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है ।
पल में रूठना पल में मान  जाना 
बात बात में मुँह का फुल जाना ,
जिद्द में अपनी बात मनवाना 
हक से सारा सामान जुटाना ,
खट्टी मीठी बातों की हर याद प्यारी लगती है 
बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है ।।
कच्ची मिट्टी की काया थी 
मन मे लोभ न माया थी ,
स्नेह की बहती धारा थी 
आशीषों की सर पर छाया थी ,
चिंता रहित बहुत ही मासूम सी जिंदगी लगती है 
बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है ।





रविवार, 19 अप्रैल 2015

मन के मोती

हर फिक्र से आजाद हम होने लगे है ,
सोचने सबके लिए अब कम लगे है .
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शिकायतो मे ही हमेशा जिन्दगी
बसर करना अच्छा नही ,
लौटकर नही आता यहॉ फिर
जो गुजर जाता हैै वक्त कभी .


मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

सालगिरह पर

आज का दिन ही ऐसा है जो हमे
लिखने को मजबूर कर रहा है ,
क्योकि हमारी जिन्दगी से ये
एक बर्ष को दूर कर रहा है .
जो आती है चीज यहॉ वो जाती भी है
इसे बयां हमारा  दस्तूर कर रहा है .

गुरुवार, 26 मार्च 2015

युग परिवर्तन

न तुलसी होंगे, न राम
न अयोध्या नगरी जैसी शान .
न धरती से निकलेगी सीता ,
न होगा राजा जनक का धाम .
फिर नारी कैसे बन जाये
दूसरी सीता यहां पर ,
कैसे वो सब सहे जो
संभव नही यहां पर .
अपने अपने युग के अनुसार ही
जीवन की कहानी बनती है ,
युग परिवर्तन के साथ
नारी भी यहॉ बदलती है .