बुधवार, 26 अगस्त 2009

मेरी चिंताए

मेरे ख्यालों की धारायें ,

जन - हित चिंता दर्शाती है ,

क्योंकि

मानव जीवन की पहेलियों के

संग उलझी रह जाती है

देख विवशता आदर्श की ,

निः शब्द स्तब्ध रह जाती है

क्या होगा आगे इस युग का ,

ये सोच काँप सी जाती है

ये चक्र विचारों का हमें ,

जाने किस ओर ले जाएगा

इस स्वर्ण धरा को भविष्य ,

किस रस से अलंकृत कर पायेगा

सोमवार, 24 अगस्त 2009

मनोवृति

सुबह -सुबह का वक्त

दरवाजे के बाहर

खड़ा कोई शख्स ,

बड़ी तेज आवाज़ लगाई ,

क्या कोई है भाई ?

अन्दर से एक सभ्य

महिला निकल आई ,

देख भिखारी को

आँखे तमतमाई ,

तभी भिखारी ने कहा ,

दे -दे कुछ माई ,

अल्लाह भला करेगा तेरा

मिलेगी तुझे दुहाई

पर इस बात से उसके

कानो पे कहाँ जूँ रेंग पाया ,

उसने अपने वफादार

टौमी को बुलाया ,

भिखारी के पींछे दौड़ाया ,

भिखारी झोला ,कटोरा

लिए दौड़ा ,

लेकिन कुत्ते ने उसे

कहाँ छोड़ा ।

मांस का टुकड़ा नोंच लाया ,

और मजे से चबाया

फिर भी

मालिक ने उसे सहलाया ,

दूध -बिस्कुट खिलाया ,

और समझाया

बेटा -आगे से ऐसे ही पेश आना ,

इन गंदे कीड़ों को यहाँ

आने पर पड़े पछताना

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

ये इश्क नही आसान फिर भी ......

कहते है प्यार ज़िन्दगी देता है ,
इसे तो मैंने बेसहारा करते देखा ,
दर्द में लोगो को डूबोते देखा ,
दर्द से दर्द को लड़ते देखा ।
ज़ख्म को हर पल उभरते देखा ,
आंसुओ में भीगते -भीगोते देखा ।
बन्धनों में नेह टूटते देखा ,
पकड़ने की चाह में छूटते देखा ।
तिनका -तिनका से बना आशियाना ,
इस भरोसे पर टूटते देखा ।
फिर भी इसका दामन सबको ,
हर सदी में थामते देखा ।
इश्क ने हमें कही का छोड़ा नही ,
फिर भी इश्क को हमने छोड़ा नही ।

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

'राजीव'

शिष्ट शालीन सौम्यता के

धनी राजीव --

नम्र ,शांत ,प्रतिभाशाली

प्रकृति के राजीव --

श्लाका पुरुष ,उज्जवल भारत के

निर्माण कर्ता थे राजीव --

अहिंसा ,सहिष्णुता ,त्याग की

मिसाल लिए

सच्चे भारतीय थे राजीव --

स्नेही व्यवहार ,श्लाघनीय ,

बुलंद इरादों का व्यक्तित्व

झोंक दिया जीवन जिसने

बनाने को देश -समृद्ध

मुख पर थी सरल मुस्कानों की आभा

संघर्ष -पथ पर जीवन उस दिव्य पुरुष का ,

स्वदृष्टा चले ही जाये

नहीं होते सपने ख़तम

राजीव के योगदान एवं कल्पनाओ को

साकार करते रहे हम

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

द्वेष

बाढ़ की चपेट में

सारा गाँव ,

आतंक कुछ क्षेत्र का

आतंकित सारा समाज ,

आतंकवादी कुछ एक

शिकार सम्पूर्ण देश

चलो ढूंढें ऐसी जगह

हो ,जहाँ सांप्रदायिक दंगे

हो , कोई क्लेश

टूट गया इंसानियत का ढांचा

वज़ह रही एक द्वेष ।

शनिवार, 15 अगस्त 2009

खोज करती हूँ उसी आधार की

फूंक दे जो प्राण में उत्तेजना
गुण वह इस बांसुरी की तान में
जो चकित करके कंपा डाले हृदय
वह कला पायी मैंने गान में
जिस व्यथा से रो रहा आकाश यह ,
ओस के आँसू बहाकर फूल में
ढूंढती इसकी दवा मेरी कला ,
विश्व वैभव की चिता की धूल में
डोलती असहाय मेरी कल्पना
कब्र में सोये हुओ के ध्यान में
खंडहरों में बैठ भरती सिसकियाँ
विरहणी कविता सदा सुनसान में
देख क्षण -क्षण में सहमती हूँ अरे !
व्यापनी क्षणभंगुरता संसार की
एक पल ठहरे जहाँ जग हो अभय ,
खोज करती हूँ उसी आधार की

-_____________-
आगे इस रचना को प्रकाशित करते समय शब्द इधर उधर हो गए और दोबारा इसे लिखना पड़ाये रचना बहुत पुरानी मेरे मित्र की लिखी है जो मेरे लिए प्रेरणा स्रोत है ,आगे इससे जुड़ी बातें लिख चुकी हूँ

खोज करती हूँ उसी आधार की

फूँक दे जो में उत्तेजना
गुण न वह इस बांसुरी की तान में ,
जो चकित करके कंपा डाले हृदय
वह कला पायी न मैंने गान में ।
जिस व्यथा से रो रहा आकाश यह
ओस के आंसू बहा के फूल में ।
ढूंढती इसकी दवा मेरी कला
विश्व वैभव की चिता की धूल में ।
डोलती असहाय मेरी कल्पना
कब्र में सोये हुओ के ध्यान में ।
खंडहरों में बैठ भरती सिसकियाँ
विरहणी कविता सदा सुनसान में ।
देख क्षण -क्षण में सहमती हूँ अरे !
व्यापिनी क्षणभंगुरता संसार की ।
एक पल ठहरे जहाँ जग हो अभय
खोज करती हूँ उसी आधार की ।

(सविता सिंह)

_________________________
ये रचना उन दिनों की है जब उच्चमाध्मिक स्तर में अध्यन करते हुए ,हमारी मित्र मंडली के ऊपर लिखने का जूनून सवार था हमलोग व्यस्तता में भी खयालो को रहने के लिए कागज़ के घर दे जाते थे और मेरे इन्ही साथियों में से एक साथी की दिमागी उपज है जो मेरे हृदय को स्पर्श करने के साथ साथ प्रेरणा स्रोत भी हुई । आज हमें बिछडे बरसो हो गए अब तो यकीं से कह भी नही सकती कि हम मित्र है मगर शब्द और भाव आज भी साथ है ,वो सुनहरे पल भी । आजादी क्या है ?इससे जुड़े कितने प्रश्नों पर मैं एक आलेख लिखी और मन हालातो से जुड़कर इतना दुखी हुआ कि ये रचना उभर आई और शिकायत से ज्यादा खोज है ऐसे आधार की ........


मंगलवार, 11 अगस्त 2009

कुछ तो कमी सदा रही

कुछ तलाश है मन को आज भी

सब कुछ हमारे पास है फिर भी

ज़रो में कोई शै है नही

फिर भी इंतज़ार सा है सही

ढूंढ रहे है जाने क्या हम

शायद हमें ही पता नही

कुछ कुछ कमी सदा रही ,

इस मन में जो संतोष नही

"नर हो निराश करो मन को"

पर बात कहाँ ये वश की रही

कहते है हम ,कोई गिला नही ,

फिर भी शिकायत बनी रही

ये बात आम है ,ख़ास नही ,

आदमी इन आदतों का है आदी कही

रविवार, 9 अगस्त 2009

न्याय


पहली रात की बिल्ली

मारना किसे चाहिए

मार कौन रहा था ।

सारे उम्र की बाज़ी

एक पल में लगा रहा था ।

पलड़े का भार

कही दिशा न बदल दे ,

सभी बाँटें अपने पलड़े पर चढ़ा रहा था ।

कांटे की नोंक को असंतुलित कर ,

अपनी ही ओर झुकाते जा रहा था ।

शायद वक्त ही उससे

ये करवा रहा था ।

और वक्त ही उसकी हरकत पर

मंद -मंद मुस्कुरा रहा था ।

शनिवार, 8 अगस्त 2009

स्मृतियाँ

स्मृतियाँ लहराती है

भीनी -भीनी खूशबू सी ,

उड़ती है लेकर यादों की

सिमटी हुई धूल

हर याद किसी शै को

साथ लिए होती है

कभी वह उभरती हुई

कभी डूबी होती है

मानस पटल पर ये रेखा

जुडी होती है किसी रस्म -भांति ,

तय करती है कभी फासले

कभी नजदीक होती है

अतीत -वर्तमान को

नापती - तौलती हुई ,

कभी सहारा देती

कभी बेसहारा करती है


गुरुवार, 6 अगस्त 2009

याचना

आहिस्ते -आहिस्ते आती शाम
ढलते सूरज को करके सलाम ,
कल सुबह जो आओगे
लपेटे सुनहरी लालिमा तुम ,
आशाओं की किरणे फैलाना
मंजूर करे जिससे , ये मन ।
कण -कण पुलकित हो जाए
तुम ऐसी उम्मीद जगाना ,
जन -जन में भरकर निराशा
न रोज की तरह ढल जाना ,
आशाओ के साथ उदय हो
खुशियों की किरणे बिखराना,
करती आशापूर्ण याचना
हाथ जोड़कर आती शाम ,
रवि तुम्हे संध्या बेला पर
करू उम्मीदों भरा सलाम ।

बुधवार, 5 अगस्त 2009

अश्को का सैलाब
डबडबा रहा है आंखों में ,
फिर भी एक बूँद
पलको पर नही ,
निशब्द खामोशी भरी उदासी
कहने को बहुत कुछ पास में ,
परन्तु बिखरी है संशय की
धुंध भरी नमी सी ,
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति
होती है यकीन की ।

सोमवार, 3 अगस्त 2009

बेलगाम ख्यालो के संग

हर क्षण , हर पल

फैसले यहाँ बदलते है

ज़िन्दगी जीने की चाह भी

कितने रंग में ढलती है

अस्थाई ख्वाहिशों के महल

निराधार ही होते है

बेलगाम ख्यालो के संग

फिर भी

हवाओ में सफर तय

करते है