सोमवार, 28 सितंबर 2009

आज.....

दिल ये मानता है उम्र भर

साथ कोई चलता नही ,

दिल ये समझ नही पाता

वो तन्हा जी सकेगा कि नही

किसी मुकिम की तलाश में

ख्वाहिश सदा रही साथ चलने की ,

निबाहे जहाँ वफ़ा के संग

मुकाम वो हो कोई दिल का भी

दुनिया की भीड़ में होकर भी

चाह थी हमें किसी अपने की ,

तमाम उम्र का हिसाब है किसके पास

वर्तमान में भविष्य को तौलता कोई नही

सम्भव हो जहाँ तक ,तब तक चल

आज है संग हमराही ,

अभी देखना क्या कल

कल देखेंगे कल की

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

कभी -कभी ऐसा भी...........

दिन भर की भाग -दौड़ के बाद

जब बिस्तर पर लेटे होगे ,

और मेरे ख्यालों को लपेटे

आँखे मूँद सोचे होगे ,

अच्छी बुरी कई बातें

तुम्हारी नज़रों में होगी ,

पर मेरी बेतुकी बातें तुमको

तकलीफे दे रही होंगी

अनचाहे मन से मुझको

भला -बुरा कहते होगे ,

एक पल अपना

एक पल पराया

महसूस तुम्हे होता होगा ,

इतनी दुविधाओ में भी

चाहत नही मिटती होगी

और मेरी अच्छाई का

ख्याल उन्हें आता होगा ,

जिसकी वज़ह से ये बंधन

वही ठहर जाता होगा

रविवार, 20 सितंबर 2009

ख्वाहिशों .........

आज सोचा चलो अपनी


ख्वाहिशो को रास्ता दूँ ,


राहो से पत्थर हटाकर


उसे अपनी मंजिल छूने दूँ ,


मगर कुछ ही दूर पर्वत खड़ा था


अपनी जिद्द लिए अडा था ,


उसका दिल कहाँ पिघलता


मुझ जैसा इंसान नही था


स्वप्न उसकी निष्ठुरता पर ,


खिलखिलाकर हँस पड़े


हो बेजान , अहसास क्या समझोगे


हद क्या है जूनून की ,कैसे जानोगे ?


आज नही सही कल पार जायेंगे


उड़ान भर ;मंजिल छू जायेंगे


मंगलवार, 15 सितंबर 2009

हम -तुम

इस दुनिया की भीड़ में

हम -तुम तन्हा चलते है ,

थाम हमारे इन हाथों को

इन राहों पे निकलते है ,

घुँघरू की झंकारों सी

है झंकृत होती खामोशी ,

हल्की मुस्कानों की आभा से

लबो पे एक किरण बिखरी ,

आपस में इन नज़रो ने

कही बातें अनकही ,

यदि अंत न हो राहों का

तो ये सफर थमता न कही ,

ख्यालों में गुमसुम होकर

हम चलते रहते यूँ ही

बुधवार, 2 सितंबर 2009

खामोशी

खड़ी खड़ी मैं देख रही,

मीलों की खामोशी,

नहीं रही अब इस शहर में,

पहली सी हलचल सी।

खामोशी का अफसाना क्यों ,

ये वक्त लगा है लिखने,

जख्मों से हरा-भरा

ये शहर लगा है दिखने।

देकर कोई आवाज़ कहीं से

ये तोड़ो लम्बी खामोशी।

बेहतर लगती नहीं कहीं

गलियों में फिरती खामोशी।