सोमवार, 27 सितंबर 2010
छोटी छोटी रचनाये
जिंदगी यूं ही गुजरती है
यहाँ दर्द के पनाहों में ,
क्षण -क्षण रह गुजर करते है
पले कांटो भरी राहो में ।
....................................................
हर दिन गुजर जाता है
वक़्त के दौड़ में ,
आवाज विलीन हो जाती है
इंसानों के शोर में ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वफ़ा तब मोड़ लेती है
जमाने के आगे ,
न जलते हो कोई जब
उम्मीदों के सितारे ।
=====================
उन आवाजो में पड़ गई दरारे
जिन आवाजो के थे सहारे ।
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
अपनो के शहर में
ढूँढे अपने ,
पर मिले पराये और
झूठे सपने ।
<<<<<<<<<<<<<<<<<
अनामिका के आग्रह पर बचपन की कुछ और रचनाये डाल रही हूँ ,जो दसवी तथा ग्यारहवी कक्षा की लिखी हुई है ।
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
आपसी द्वेष
सोमवार, 13 सितंबर 2010
याचना
आहिस्ते -आहिस्ते आती शाम
ढलते सूरज को करके सलाम ,
कल सुबह जो आओगे
लपेटे सुनहरी लालिमा तुम ,
आशाओं की किरणे फैलाना
मंजूर करे जिससे , ये मन ।
कण -कण पुलकित हो जाए
तुम ऐसी उम्मीद जगाना ,
जन -जन में भरकर निराशा
न रोज की तरह ढल जाना ,
आशाओ के साथ उदय हो
खुशियों की किरणे बिखराना,
करती आशापूर्ण याचना
हाथ जोड़कर आती शाम ,
रवि तुम्हे संध्या बेला पर
करू उम्मीदों भरा सलाम ।
ढलते सूरज को करके सलाम ,
कल सुबह जो आओगे
लपेटे सुनहरी लालिमा तुम ,
आशाओं की किरणे फैलाना
मंजूर करे जिससे , ये मन ।
कण -कण पुलकित हो जाए
तुम ऐसी उम्मीद जगाना ,
जन -जन में भरकर निराशा
न रोज की तरह ढल जाना ,
आशाओ के साथ उदय हो
खुशियों की किरणे बिखराना,
करती आशापूर्ण याचना
हाथ जोड़कर आती शाम ,
रवि तुम्हे संध्या बेला पर
करू उम्मीदों भरा सलाम ।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)