सोमवार, 27 सितंबर 2010

छोटी छोटी रचनाये


जिंदगी यूं ही गुजरती है
यहाँ दर्द के पनाहों में ,
क्षण -क्षण रह गुजर करते है
पले कांटो भरी राहो में ।
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हर दिन गुजर जाता है
वक़्त के दौड़ में ,
आवाज विलीन हो जाती है
इंसानों के शोर में ।
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वफ़ा तब मोड़ लेती है
जमाने के आगे ,
न जलते हो कोई जब
उम्मीदों के सितारे ।
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उन आवाजो में पड़ गई दरारे
जिन आवाजो के थे सहारे ।
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अपनो के शहर में
ढूँढे अपने ,
पर मिले पराये और
झूठे सपने ।
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अनामिका
के आग्रह पर बचपन की कुछ और रचनाये डाल रही हूँ ,जो दसवी तथा ग्यारहवी कक्षा की लिखी हुई है

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

आपसी द्वेष


रिश्तों के आपसी द्वेष ,
परिवार का
समीकरण ही बदल देते है ,
घर के क्लेश से दीवार
चीख उठती है ,
नफरत इर्ष्या
दीमक की भांति ,
मन को खोखला करती है ,
ज़िन्दगी हर लम्हों के साथ
क़यामत का इन्तजार
करती कटती है
और विश्वास चिथड़े से
लिपट सिसकियाँ भरती है

सोमवार, 13 सितंबर 2010

याचना


आहिस्ते -आहिस्ते आती शाम

ढलते सूरज को करके सलाम ,

कल सुबह जो आओगे

लपेटे सुनहरी लालिमा तुम ,

आशाओं की किरणे फैलाना

मंजूर करे जिससे , ये मन

कण -कण पुलकित हो जाए

तुम ऐसी उम्मीद जगाना ,

जन -जन में भरकर निराशा

न रोज की तरह ढल जाना ,

आशाओ के साथ उदय हो

खुशियों की किरणे बिखराना,

करती आशापूर्ण याचना

हाथ जोड़कर आती शाम ,

रवि तुम्हे संध्या बेला पर

करू उम्मीदों भरा सलाम ।