सोमवार, 24 मई 2010

यकीन



यकीं बन कर आए


चाहो तो रोक लो,


वरना क्या जाने कब


धुँआ बन उड़ जाए


इस एतबार का कुछ


कहा जाए,


कुछ पहले साथ


आगे धोखा दे जाए

मंगलवार, 11 मई 2010

एक वो रात


वो राते लम्बी होती है

जब तन्हाई डसती है ,

यादे बोझिल होती है

तब ये नींद कहाँ पे सोती है ,

ये रात जो मुझ पे भारी है

आँखों-आँखों में कटती है ,

करवट की आहट होती है

लिए दर्द मचलती रहती है ,

नींद को तलाशते ,

आँखों में सुबह होती है ।

रविवार, 9 मई 2010

माँ ..... ........


एक वृक्ष की तरह
अटल ,स्थिर ,शांत
धीर -गंभीर सी ,
ये माँ
अपने बच्चो को
सदा फल वो
छाया देती ही रही ,
इशारों में ही हर जरूरत ,
समझ कर पूरी
करती रही
बिना कहे दर्द सभी
भांप कर ,
एक मरहम बनकर
चोंट हमारी
मिटाती रही
खुद मुरझा कर
हमारे अरमान सींचती रही
इतनी सच्ची ' माँ',
अपने सिवा सबका
ख्याल रखने वाली
ऐसी माँ की
क्या इच्छा है ?
कभी जानने की भी
हमने कोशिश की
मन में है कई
बाते उसकी ,
कभी पूछो तो
आकाश बन जाएगा
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जिसने जिंदगी के साथ -साथ
जीने का तजुर्बा भी दिया ,
उसके अहसास ,जज्बात को,
समझने की फुर्सत, हमें नही
.....................................................
माँ तुम्हे शत -शत नमन


बुधवार, 5 मई 2010

मानवता का स्वप्न



कैसा दुर्भाग्य ? तेरा भाग्य


सर्वोदय की कल्पना ,


बुनता हुआ विचार,


स्वर्णिम कल्पना को आकार देता ,


खंडित करता , फिर


उधेड़ देता लोगों का विश्वास ,


नवोदय का आधार


फिर भी आंखों में अन्धकार


इच्छाओं की साँस का


घोटता हुआ दम ,


अन्तः मन का द्वंद प्रतिक्षण


भाव - विह्वल हो कांपता ,


अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,


टूट कर भी निःशब्द ,


मानवता का 'स्वप्न '