गुरुवार, 25 अगस्त 2011


हम -तुम -------
एक ही रास्ते के

दो मोड़ है ,

जो पलट कर

उसी राह ले आते है

जहां आरम्भ और अंत

एक हो जाते है ,

फिर सोचने की कही

कोई गुंजाइश नही

रह जाती ,

फैसले की कोई सुनवाई

हो ही नही पाती l

बुधवार, 17 अगस्त 2011


ख्यालो की दौड़ कभी
थमती नही

कलम को थाम सकू

वो फुर्सत नही ,

जब भी कोशिश की

पकड़ने की

वक़्त छीन ले गया ,

एक पल को

रूकने नही दिया ,

सोचती हूँ

इन्द्रधनुषी रंग सभी

क्या बादल में ही

छिप कर रह जायेंगे ,

या जमीं को भी

कभी हसीं बनायेंगे l



रविवार, 14 अगस्त 2011

वन्दे मातरम्

आज़ादी क्या है ?
इसकी सच्ची परिभाषा क्या है ,इसे साबित कैसे करे ?ऐसे ढेरो प्रश्न इस जश्न के सामने आते -आते जहन में उठने लगते है जिनके जवाब और मायने हम बहुत हद तक जानते है और समझते भी है ,क्योंकि बचपन से ही हमें इस बिषय पर काफी समझाया और पढाया जाता है ,कूट -कूट कर देश प्रेम की भावनाये मन में भरी जाती है ,उसके प्रति क्या जिम्मेदारिया है हमारी ,इस बात का अहसास कराया जाता हैपर जैसे जैसे बड़े होते जाते है इसे अपनी जिम्मेदारियों में ,शान -शौकत के रंग ढंग में नज़र अंदाज कर देते है ,और मौके मिलने पर स्कूली ज्ञान को ही बयां करके अपने को सच्चे देश भक्त के रूप में सामने लाते हैलेकिन हर बात कह देने और बयां कर देने से ही सम्पूर्ण नही हो जाती वो मुक्कमल हो इसके लिए कर्म का योगदान बेहद जरूरी है ,तभी उसे उचित तरीके से परिभाषित किया जा सकता है और सम्मानित भी
इसके लिए अपने राष्ट्र की अमूल्य धरोहर को जिससे हमारी पहचान कायम है उसे सुरक्षित और जिन्दा रखना जरूरी है ,दूसरो के घुडदौड़ में भागना समझदारी नही है इससे खुद की पहचान लुप्त हो जायेगी ,ऐसा हो इसलिए हम अपनी समझ -पहचान कायम रक्खे तथा राष्ट्र की गरिमा को बनाये रक्खे
उदाहरण के लिए ----भाषा ,संस्कृति ,पहनावा ,एकता ,धैर्य ,लज्जा ,साहस ,खानपान आदि ऐसी बहुत सी अमूल्य बाते और चीज़े है जो हमारी अपनी पहचान है ,हमारी राष्ट्रयिता को दर्शाती है ,पर हम इन्हें ओल्ड फैशन कहकर या आधुनिकता के पक्ष में खड़े होकर नकार देते है
क्या वाकई आधुनिकता इसी में है या सोच में विचारो में ?
समझ के फर्क को समझना और सहेजना सबके वश की बात नही और यही मतभेद उत्पन्न करते है आपस में ,फिर इस स्थिति में एकता -मानवता देखने को कम सुनने को ज्यादा मिलती है
आदर करने से आदर पायेंगे ,देश की धरोहर को सलामत रखेंगे तभी अपनी खास पहचान बनायेंगे
हर बात कहकर सुनकर ही पूरी हो जाये तो कर्म की प्रधानता कहाँ रह जायेगी ,इसलिए कर्म का योगदान अति आवयश्क है उन्नति सलामती के लिए ,और इसके लिए देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझे क्योंकि यह अपनी बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी हैहमें अपनी किसी बात पर शर्म महसूस नही होनी चाहिए बल्कि अमल कर और आगे बढ़ाये
जैसे राष्ट्र भाषा हिंदी -जो पूरे हिन्दुस्तान को जोडती है ,उसकी तुलना किसी और से करना जायज नही ,उसका अपना स्थान और सम्मान है ,वो तुलनिये नही उसका स्तर उच्च कोटि का है ,वैसे भी भाषा तो भाषा है ,अंग्रेजी और हिंदी में फर्क क्या है ,वो भी भाषा है ये भी ,रूपांतरण से भाव तो नही बदल जायेंगे . उसी तरह कई बाते भिन्न होते हुए भी शायद एक जैसी ही है ,लेकिन नाम और जगह से प्रभावित हो कर हम इस बात पर नही सोचते और उनके अधीन हो जाते है ,इससे हमारी स्वतंत्रता छीन जाती है और हम अपनी पहचान खो देते हैऐसा हो इसके लिए अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व करे ,उसे अपनाये . जहाँ जाये अपने विचारो से उसे सर्वोच्च स्थान प्रदान करे ,और गर्व से कहे हम भारतीय है और हम उस मिटटी में जन्मे है जहाँ अनेकता में एकता हैएवं उसी को आधुनिक रूप -रंग में ढाले इससे देश का सम्मान भी बढेगा और अपनी खास पहचान सामने होगी
सारे जहाँ से अच्छा है हिन्दोस्तान हमारा ....जय हिंद

हमारा भारत तो विभिन्न रंगों से भरा है
इसके किसी भी रंगों को घटने दे ,
हमारा भारत बलिदानों का इतिहास है
उसके किसी भी पन्ने को मिटने दे ,
हमारा भारत पूरे विश्वमें अनोखा है
उसकी इस छवि को धुंधली पड़ने दे ,
हमारा भारत मीठी -मीठी बोलियों से भरा है
उसकी इस मिठास को कोई और स्वाद दे ,
हमारा भारत सभी धर्मो का सम्मान करता है
उसकी इस एकता को कभी टूटने दे ,
हमारा भारत अब और हिस्सों में बटे
इसके लिए कोई नाजायज मांग करे ,
हमारा भारत तो सिर्फ भारत है
इसे कोई और नाम-पहचान दे
............................................................................
जननी जन्मभूमि महान
शत -शत तुम्हे प्रणाम ,
तुम्ही हो मेरा गौरव
तुमसे ही है अभिमान
जय भारत जय भारती

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

रक्षाबंधन


रंग बिरंगे धागों का
ये सुन्दर त्यौहार ,

नयनो में सपने संजोये

लौट आया फिर आज .

भाई के स्नेह में लिपटी

बहने हो रही निहाल ,

निकल पड़ी है सज के

जाने को वो बाज़ार ,

भीनी सी मुस्कान लिए

रही राखियों को निहार ,

सबसे सुन्दर कौन सी राखी

उलझ गई लिए ख्याल ,

भईया खुश हो जाये मेरा

कलाई पर किसे बाँध ,

भाव विभोर हो उठी है

वो करके बचपन ध्यान ,

नयनो में सावन की बूंदे

झूम पड़ी लिए धार ,

अपने मन के खुशियों को

नही पा रही वो संभाल ,

चन्दन ,मीठा ,अक्षत ,दीप

साथ में लिए राखी -रुमाल

ढेरो उमंगें भर कर मन में

सजा रही बहन राखी के थाल ,

निभा रहें राखी के बंधन

मिल भाई बहन आज ,

सावन की हरियाली में

लहलहा रहा पावन प्यार ,

रक्षाबंधन का आया है

पावन सुन्दर त्यौहार l



गुरुवार, 4 अगस्त 2011

अनुभव


छोटी सी दो रचनाये
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महंगाई से अधिक
भारी पड़ी हमको
हमारी ईमानदारी ,
महंगाई को तो
संभाल लिया
इच्छाओ से समझौता कर ,
मगर ईमानदारी को
संभाल नही पाये
किसी समझौते पर
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरी हर हार
जीत साबित हुई ,
बीते समय की
सीख साबित हुई l