जियो और जीने दो ....
बात अपनी होती है
तब
जीने की उम्मीद को
रास्ते देने की
सोचते है वो ,
बात जहाँ औरो के
जीने की होती है ,
वहाँ उनकी उम्मीद को
सूली पर लटका
बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते
कील ठोकते हुये
दम घोटने पर
मजबूर करते है ।
रास्ते के रोड़े ,
हटाने की जगह
बिखेरते क्यों
रहते हैं ?
........................................
इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .
टिप्पणियाँ
..आभार.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
मेरे से पहले हम को विचारना
दूसरों की राह के जो कंटक बने
उन्हें भी सूलों का सामना करना होगा
राह के रोड़े बने जो किसी के
दुरुह हो जाएगा रास्ता खुद का
सुंदर भाव
सुंदर प्रस्तुति.
प्रोत्साहन जहां ऊर्जा प्रदान करता है...
वहीं अनावश्यक टोकाटाकी से इन्सान का आत्मविश्वास डगमगा जाता है...
अच्छा संदेश देती रचना के लिए बधाई.
achchha sandes deti hui...!
badhai swikaren!
www.ravirajbhar.blogspot.com
सार्थक संदेश है।
…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते
कील ठोकते हुये
दम घोटने पर
मजबूर करते ..
बहुत ही गहरी बात कह दी आप ने ज्योति जी इस कविता में.सफलता की और कदम बढ़ा रहे व्यक्ति को हतोत्साहित करने वाले ऐसे लोग भी राह में मिलते हैं जिससे ब्यक्ति आगे बढ़ने का उत्साह खोने लगता है.
न जाने वे लोग क्यूँ करते हैं ऐसा?शीर्षक सही रखा है -जियो और जीने दो.
बहुत ही अच्छी कविता है.
सुन्दर रचना