शाम से लेकर सुबह का इन्तजार
इन दो पहरों में दूरियाँ हुई हजार ।
फासले बढ़ते रहे लेकर तेज रफ़्तार
बेताबी करती रही दिल को बेकरार ।
मिटने लगी दूरियाँ आने से उसके आज
बढ़ने लगी बैचेनियाँ हर आहट के साथ ।
नजदीकियां करने लगी ख़ामोशी इख्तियार
देखकर हम उनको सामने करेंगे क्या बात ।
मिनटों में यहाँ आये कितने सारे ख्याल
फुर्सत में भी रहे जिनसे हम बेख्याल ।
जाने क्या रंग लाएगी अपनी ये मुलाकात
पत्थर न हो जाये दिल के सब जज़्बात ।
टिप्पणियाँ
ज्योती जी लिखते रहिये,सानदार प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार
सुप्रसिद्ध साहित्यकार व ब्लागर गिरीश पंकज जीका इंटरव्यू पढने के लिऐयहाँ क्लिक करेँ >>>>
एक बार अवश्य पढेँ
पत्थर न हो जाये दिल के सब जज़्बात ।
वाह ! क्या खूब !
ऐसा ही होता है जब कितना कुछ कहने के लिए सोचते हैं मगर जब आमने सामने आते हैं सब कुछ भूल जाते हैं.
सुन्दर रचना.
bhabheepost per aapke udgar dravit kar gaye.......
Aabhar
bahut hi khubsurt bhavo se bhari rachna .
पत्थर न हो जाये दिल के सब जज़्बात
bahut hi khoobsurat pankiyaan..
bahut acchi lagin..
dhnywaad..
http://charchamanch.blogspot.com/
नीरज