पत्थरों का ये स्रोत ..
क्या लिखूं
क्या कहूं ?
असमंजस में हूँ ,
सिर्फ मौन होकर
निहार रही
बड़े गौर से
पत्थर के
छोटे -छोटे टुकड़े ,
जो तुमने
बिखेर दिये है
मेरे चारो तरफ ,
और सोच रही हूँ
कैसे बीनूँ इनको ?
एक लम्बा पथ तुम्हे
बुहार कर
दिया था ,मैंने
और तुमने उसे
जाम कर दिया
कंकड़ पत्थर से ।
पर यहाँ
सहनशीलता है
कर्मठता है
और है
इन्तजार करने की शक्ति ,
ठीक है ,
तुम बिखेरो
हम हटाये ,
आखिर कभी तो
हार जाओगे ,
और बिखरे पत्थर
सहेजने आओगे ,
और खत्म होगा
पत्थरों का
ये स्रोत ।
""''""""""""""""""""""""
मौन होकर निहार रही हूँ
तेरे बिखेरे पत्थरों को ...
मैं तो फिर भी चल लुंगी
कभी जो चुभ जाये तेरे ही पैरों में
पुकार लेना ....
शायद तुम वो दर्द
सहन न कर पो .....
टिप्पणियाँ
पत्थर को माध्यम बना कर आप ने बहुत सच्ची बात कही
बधाई
यही सहनशीलता तो मुश्किलों में हिम्मत देती है और पराजय को विजय में बदल देती है.
आत्मशक्ति अगर मजबूत है तो कितनी ही पत्थर रूपी अडचने आयें ..चलते रहने के लिए रास्ता मिल ही जाता है.
बहुत अच्छी कविता लिखी है.
कभी तो हार जाओगे ...
यही तो करते रहते हैं हम ...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...!
तुमने मेरा डर मिटा दिया
बस अब इन पत्थरों में
खुदा ही खुदा नज़र आता है....
कहना क्या !
आखिर कभी तो हार जाओगे
और बिखरे पत्थर...सहेजने आओगे..
और ख़त्म होगा..पत्थरों का स्रोत.
ज्योति जी,
पत्थरों को प्रतीक बनाकर
कितनी नाज़ुक बात कह गईं आप.
बहुत बहुत बधाई..
इस खूबसूरत एहसास से लबरेज़ रचना के लिए.
हार जाओगे ,
और बिखरे पत्थर
सहेजने आओगे ,
और खत्म होगा
पत्थरों का
ये स्रोत ।
ati sundar
आभार...
सच्ची बात कही.......
bahut sunder abhivykti.
तेरे बिखेरे पत्थरों को ...
मैं तो फिर भी चल लुंगी
कभी जो चुभ जाये तेरे ही पैरों में
पुकार लेना ....
शायद तुम वो दर्द
सहन न कर पो .....
है न ......????
दुनिया भर के
पाषाण समर्पित ।
ज्योति जी . आपकी
रचना में प्रेम की उत्कट अभिव्यक्ति है ।
प्रशंसनीय ।
कभी तो हार जाओगे ...
यही तो करते रहते हैं हम ...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...!
सहेजने आओगे ,
और खत्म होगा
पत्थरों का
ये स्रोत ।
यही है जीवन्तता... बहुत सुन्दर रचना