धीरे - धीरे यह अहसास हो रहा है ,
वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है।
कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़ ,
आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है।
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इन्तहां हो रही है खामोशी की ,
वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं।
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जिंदगी है दोस्त हमारी ,
कभी इससे दुश्मनी ,
कभी है इससे यारी।
रूठने - मनाने के सिलसिले में ,
हो गई कहीं और प्यारी ।
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इस इज़हार में इकरार
नज़रंदाज़ सा है कहीं ,
थामते रह गए ज़रूरत को ,
चाहत का नामोनिशान नहीं।
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ये बहुत पुरानी रचना है किसी के कहने पर फिर से पोस्ट कर रही हूँ ।
टिप्पणियाँ
उसका वजूद जिन्दा
रहता है ,
सूरज की तपिश
उसके अस्तित्व को
जला देती है ।
हर किसी को अपने अस्तित्व का ख्याल रहता है ..चाहे ओंस की बूंद हो या कोई और जिससे उसका बजूद बचता है वह उससे रुकने का आह्वान करता है ...आपका आभार
आपकी कविता में संवेदना की असीमित गहराई होती है !
आभार !
नमस्कार !
ओस की बूँद के माध्यम से मृदुल कोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
उसका वजूद जिन्दा
रहता है ,
सूरज की तपिश
उसके अस्तित्व को
जला देती है ।
... bahut achhi rachna
आने की प्रतीक्षा
कतई नही करती ,
चाँद से रूकने की
जिद्द करती है ,
kyaa bat hai! bahut sundar !man ko chhoo gai ap ki ye kavita
badhai ho
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (31-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत अच्छे भाव ....!!
honee taltee nahee.
aae hai to jana hee hai.....
उसका वजूद जिन्दा
रहता है ,
सूरज की तपिश
उसके अस्तित्व को
जला देती है ।
भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है. इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ……
itna sab janane ke bavjud aos ki nanhi si bund jab talak rahti hai patto pr baithi hui apni sudarta avam soumyta ko samet kar sbhi ke dil ko ek alag si khushi pradan karti hai .
yah jante hue bhi ki uska jeevan xhnik hi hai.
bahut sarthakaur seekh dene wali rachna
badhai
poonam